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________________ २४ उपा. यशोविजय रचित उभयजननैकस्वभावस्य चानेकत्वगर्भत्वेन सर्वथैकत्वायोगाद् एकया शक्त्योभयकार्य जननेतिग्रसङ्गाद् विभिन्नस्वभावानुभवाच्च । तस्मान्माधुर्य-कटुकत्वयोः परस्परानवेधनिमित्लमेवोमयदोपनिवर्तकत्वमित्यादरणीयम् । द्रव्यान्तर में उभय दोष के उपशमकी कारणता की शंका] "उभये"ति-यहाँ यह आशंका होती है कि-"द्रव्यान्तर मानने पर भी कफ और पित्त इन दोनों दोषों के उपशम का कारण वह चूर्णरूप द्रव्यान्तर बन सकता है। क्योंकि उस द्रव्य में जो हम एकस्वभावता मानेंगे वह कफोपशम और पित्तोपशम इन दोनों कार्यो की जनिका मानेंगे तब तो कार्यद्वयजनक एकस्वभाववाला वह द्रव्यान्तर होगा और उस से कफ और पिन दोनों की निवृत्ति हो जायगी, तब उस मिश्रण में जात्यन्तर मानने की क्या आवश्यकता होगी ? अर्थात् कुछ नहीं। तब दृष्टान्त में जात्यन्तरता की असिद्धि होने से दार्टान्तिक जो कथञ्चित् उभयात्मक एकवस्तु में जात्यन्तरता है उस की सिद्धि नहीं हो सकती है।" [उमयदोष निवर्तक स्वभाव अनेकत्वगर्भित-प्रत्युत्तर] इस का समाधान उपाध्यायजीने ऐसा दिया है कि कफनिवृत्ति और पित्त निवृत्ति इन दोनों कार्यो का जनक स्वभाव एक नहीं हो सकता है क्योंकि उअयजनन एकस्वभाव में उभयत्व का प्रवेश होने से वह स्वभाव अनेकत्व गर्भित है, अर्थात अनेकत्व उसकी कुक्षि में प्रविष्ट है, क्योंकि कपानिवृत्ति और पित्तनिवृत्ति ये दोनों कार्य हैं । यहाँ कार्य का भेद है इसलिए कार्य के भेद से स्वभाव का भी भेद होगा । अतः अनेक कार्यजनक स्वभाव में एकत्व किसी तरह नहीं आ सकता है। इसलिए उस चूर्णद्रव्य को अनेक कार्यजनक एकस्वभाव नहीं मान सकते हैं। तब ऐसे स्वभाव से दोषद्वय की निवृत्ति नहीं हो सकती है । अतः दोषद्वय निवृत्ति के लिए उस द्रव्य में उभय स्वभाव जात्यन्तर मानना ही श्रेयस्कर है। [एक स्वभाव द्रव्यान्तरगत एक शक्ति से कार्यद्वय की अनुपपत्ति] यदि यह शंका ऊठायी जाय कि-"गुडशुण्ठी मिश्रण से बने हुए द्रव्य में कार्यद्वयजनक एकस्वभावता नहीं मानी जाय तो भी उस द्रव्य मे जात्यन्तर मानने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उस द्रव्य में कार्यद्वयजनक एक शक्ति मानेंगे, उसी शक्ति के द्वारा कफशमन और पित्तशमन ये दोनों कार्य हो जायेंगे, जात्यन्तर मानना निरर्थक है"-तो इसका समाधान इस प्रकार से दिया गया है कि- एकशक्ति से यदि कार्यद्वय का जनन मानेगे तो कफशमन और पित्तशमन इन दोनों कार्यो में भेद सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि कारणवैलक्षण्य से ही कार्य में वलक्षण्य आता है। शक्ति तो आप एक मानते हैं, क्योंकि पित्तशमन करनेवाली जो शक्ति है वही शक्ति कफशमन करनेवाली भी आप मानते हैं । इसलिए पित्तशामक शक्ति और कफशामकशक्ति में भी बलक्षण्य नहीं होगा। तब पित्तशमन और कफशमन इन दोनों कार्यों में भी वैलक्षण्य नहीं होगा । इसलिए पित्तशमन ही
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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