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________________ नयरहस्ये व्यवहारनयः हो जायगा । अतः "यह घट है, यह द्रव्य है" इत्यादि प्रतीतिसिद्ध घटत्व- द्रव्यत्वादि सामान्य को भी मानना चाहिए ।" तो यह सङ्गत नहीं है । कारण, विधिरूप सामान्य को ही हम नहीं मानते हैं । अन्यापोहरूप यानी इतरव्यावृत्तिरूप सामान्य को, तो हम मानते ही हैं, सामान्य का सर्वथा अपलाप हम नहीं करते हैं । घटेतरव्यावृत्तिरूप घटत्व से ही “यह घट है” इत्यादि अनुगत प्रतीति बन जायगी । इसीतरह द्रव्येतरव्यावृत्तिरूप द्रव्यत्व को मानकर "यह द्रव्य है, यह द्रव्य है" यह प्रतीति भी बन जायगी, अतः अपोह से अतिरिक्त विधिरूप सामान्य नहीं है, ऐसा मानने में, न तो शून्यवादी के मत में प्रवेश का प्रसङ्ग है और न सिद्धान्तभङ्ग का प्रसङ्ग है, क्योंकि हम विशेषों का स्वीकार करते हैं । इसलिए शून्यवादी के मत में जैसे लोकव्यवहार के उच्छेद का प्रसङ्ग होता है वैसे व्यवहारनय की दृष्टि में नहीं होता है । व्यवहारनय के मत में लोकव्यवहारोपयोगी विशेष रूप घटादि मान्य हैं । १२७ [ अन्यापोहरूप सामान्य की ज्ञप्ति मे अन्योन्याश्रय दोष ? ] यदि यह तर्क ऊठाया जाय कि - "घटत्व, द्रव्यत्वादि को विधिरूप न मानकर अन्यापोहरूप ही व्यवहारनय मानेगा तो अन्योन्याश्रय दोष का प्रसंग आयेगा । जहाँ दो पदार्थों में परस्पर की उत्पत्ति में परस्पर की अपेक्षा होती है अथवा परस्पर के ज्ञान में परस्पर के ज्ञान की अपेक्षा होती है वहाँ अन्योन्याश्रय दोष होता है । घटत्व को यदि घटान्यापोहरूप मानेंगे तो अपोह शब्द का भेद अर्थ होने के कारण घटत्व घटान्यभेदरूप पडेगा, घटान्य शब्द का अर्थ घटान्यत्व विशिष्ट पटादि होता है और पटादि का अपोह घट में पटाद्यन्यत्वरूप होगा । अपोह, अन्यत्व, भेद, व्यावृत्ति इन चारों शब्दों का अर्थ एक ही होता है । घट में घटान्यत्वरूप घटत्व का ज्ञान करना होगा, तब पटादिनिष्ठ घटान्यत्व के ज्ञान की अपेक्षा रहेगी तभी घट में पटान्यत्व का ज्ञान हो सकेगा, और पटादिनिष्ठ घटान्यत्व का ज्ञान करना होगा तो घट में जो पटान्यत्व है, उस के ज्ञान की अपेक्षा होगी । इस तरह घटगत पटान्यत्व के ग्रह की अपेक्षा होने से ज्ञप्ति में अन्योन्याश्रय दोष का प्रसंग उपस्थित होता है अतः अन्योपोहरूप घटत्वादि को मानना संगत नहीं हो सकता है।" - तो इस तर्क का समाधान यह है, समाधान:- घट में घटान्यापोहरूप घटत्व को स्वीकार करने पर अन्योन्याश्रय दोष का प्रसंग तभी हो सकता है, यदि घटान्यान्यत्वरूप घटान्यापोह को सखण्ड अभावरूप माना जाय । सखण्ड अभाव मानने पर एक खण्ड 'घटान्य' होगा, दूसरा खण्ड 'तदन्यत्व' होगा, इसलिए घटभेद ग्रह में पटभेदग्रह की और पटभेदग्रह में घटभेदग्रह की अपेक्षा होने से अन्योन्याश्रय दोष उपस्थित होने को अवकाश था । परन्तु व्यवहारनय घटान्यापोह को सखण्ड अमावरूप नहीं मानता किन्तु अखण्ड अभावरूप मानता है, अर्थात् घटगत घटत्व जो घटान्यान्यत्वरूप है, वह अखण्डभेदरूप है, ऐसा मानता है। अखण्ड घटान्यापोह के ज्ञान में पटान्यत्व ज्ञान की अपेक्षा नहीं रहती है क्योंकि अपोह घटभेद और पटभेद इन दोनों का खण्डरूप से प्रवेश नहीं है, अतः घटान्यापोह का ज्ञान घटभेद ज्ञान के बिना भी हो जायगा । दो वस्तु रहने पर ही परस्पर में सापेक्षता की सम्भावना
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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