SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयरहस्ये नैगमनयः मतान्तराभिप्रायेण तु पर्यायार्थिक एव द्रव्यस्य कल्पितस्य विशेषणत्वम् , द्रव्यार्थिके तु प्रागुपदर्शितदिशा पर्यायस्याऽकल्पितस्यापि विशेषणत्वं न्याय्यमेव । न च नये विशेपणं कल्पितमेवेति नियमः--सावज्जजोगविरओ, तिगुत्तो छसु संजओ ॥ उवउत्तो जयमाणो, आया सामाइयं होइ ॥ १४९॥ (आव. भाष्य) इत्यत्र का विशेषणतया भान होने पर भी द्रव्यार्थिकनय में शुद्धद्रव्यमात्र विषयता का विरोध नहीं आता है और नामादि निक्षेपण्य मात्र विषयता का भी विरोध नहीं आता है। यदि उस की दृष्टि से पर्याय में वास्तविकता होती और वह वास्तविक पर्याय विशेषणरूप से भासित होता, तब ही विरोध की सम्भावना होती-सा भाव्यकार का अभिप्राय है। एवं, पर्यायार्थिकनय का विषय शुद्ध पर्याय ही है उस में विशेषणतया जो द्रव्य भासित होता है, वह द्रव्य शुद्धपर्याय से भिन्न और कल्पित है क्योंकि पर्यायनय की दृष्टि से पर्याय ही है, द्रव्य नहीं, तब कल्पितरूप से गुणविशेषणतया द्रव्य का भान होने पर भी पर्यायनय में जो शुद्धपर्यायविषयता है उस का विरोध नहीं आता है, और भावनिक्षेप मात्रविषयता जो पर्यायनय में है उस का भी विरोध नहीं आता है। वास्तवरूप से द्रव्य का पर्यायनय में यदि भान होता तब ही उक्त विरोध की सम्भावना रहती, सो तो है नहीं-ऐसा भाष्यकार का अभिप्राय है । [द्रव्यार्थिक नय में मतान्तर से अकल्पित पर्याय स्वीकार्य ] (मतान्तर) जिस मत में व्यवस्था के अधिकार में द्रव्यार्थिकनय को नामादिनिक्षेपचतुष्टय मान्य है और पर्यायार्थिकनय को भावनिक्षेपमात्र मान्य है-यह कहा गया है-उस मत के अभिप्राय से पर्यायाथिकनय मे पर्याय का विशेषण द्रव्य कल्पित ही माना गया है क्योंकि पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से उस मत में द्रव्य का अस्तित्व मान्य नहीं है। इसलिए “भाचिय सद्दगया" इस गाथा में चिय (एव) शब्द का प्रयोग किया गया है । उस से, पर्याय (भाव) से भिन्न नाम, द्रव्य, स्थापना का व्यवच्छेद होता है । गुण के विशेषणतया द्रव्य का भान जो कहा गया है, वह कल्पित द्रव्य को मानने से ही संगत होता है । द्रव्यार्थिकनय में तो द्रव्यविशेषणतया पर्याय का जो कथन किया गया है, वहाँ पूर्वोक्त रीति अनुसार अकल्पित यानी वास्तव पर्याय का द्रव्यविशेषणतया भान द्रव्यार्थिकनय में मानना उचित ही है, इसलिए द्रव्यार्थिकनय में व्यवस्थाधिकार के अनुसार नामादिनिक्षेप चतुष्टय का अभ्युपगम युक्त ही है। _ [नय में भासमान विशेषण कल्पित होने का नियम नहीं ] (न च नये) नयों में जो-जो विशेषण भासित होते हैं, वे कल्पित ही होते हैं, इस नियम को माननेवाले विद्वान् यहाँ शङ्का करे कि-"द्रव्यार्थिकनय में अकल्पित भी पर्याय विशेषणरूप से भासित होता है यह मानना युक्तिसंगत नहीं है। आशय यह है कि पर्यायाथिकनय में पर्यायविशेषणतया भासमान द्रव्य यदि कल्पित ही माना जाय तो, उसी तरह द्रव्याथिकनय में भी द्रव्यविशेषणतया भासमान पर्याय भी कल्पित ही होना
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy