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________________ पापमय कर्मों के अनुसार सुख या दुःख का उपभोग कर सके, इसके लिये संसार की सृष्टि हुई है। ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिये इस दर्शन में अधोलिखित युक्ति दी जाती है-पर्वत, समुद्र, सूर्य, चन्द्र आदि संसार के जितने पदार्थ हैं सभी परमाणुओं में विभाजित हो सकते हैं । अतः उन पदार्थों का निर्माण किसी कर्ता के द्वारा अवश्य हुआ है । मनुष्य तो संसार का निर्माता हो नहीं सकता, क्योंकि उसकी बुद्धि तथा शक्ति सीमित है। यह परमाणु जैसी सूक्ष्म तथा अदृश्य वस्तुओं का सम्मिश्रण नहीं कर सकता । अतः इस संसार का निर्माता अवश्य कोई चेतन आत्मा है जो सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ तथा संसार की नैतिक व्यवस्था का संरक्षक है । वही ईश्वर है । ईश्वर ने संसार को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिये नहीं, बल्कि अन्य प्राणियों के कल्याण के लिये बनाया है। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि संसार में केवल सुख ही सुख है एवं दुःख का सर्वथा अभाव है । मनुष्य को कर्म करने की स्वतन्त्रता है अतः वह अच्छे या बुरे दोनों प्रकार के कर्म कर सकता है तथा तदनुसार सुख या दुःख का भागी होता है । किन्तु परमात्मा की दया या उसके मार्गदर्शन से मनुष्य अपने आत्मा तथा विश्व का तात्त्विक ज्ञान प्राप्त कर सकता है और तत्पश्चात् अपने दुःखों से मुक्ति पा सकता है । ६. वैशेषिक दर्शन : वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद थे । उनका दूसरा नाम उलूक था । न्यायदर्शन के साथ वैशेषिक दर्शन की बहुत समानता है, इसका भी उद्देश्य प्राणियों को अपवर्ग कराना है। यह सभी प्रमेयों को अर्थात् संसार की सभी वस्तुओं को द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय तथा अभाव-इन सात पदार्थों में विभक्त करता है। ___'द्रव्य' गुणों तथा कर्मों के आश्रय हैं तथा उनसे भिन्न हैं । द्रव्य नौ प्रकार के हैं—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा तथा मन । इनमें प्रथम पाँच भौतिक हैं । उनके गुण क्रमशः गन्ध, रस, रूप, स्पर्श तथा शब्द हैं । पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु क्रमशः चार प्रकार के
SR No.022471
Book TitleShaddarshan Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan
Publication Year2002
Total Pages146
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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