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________________ २. 'अनुमान' केवल इन्द्रिय के द्वारा नहीं होता । यह किसी ऐसे लिङ्ग या साधन के ज्ञानपर निर्भर करता है, जिससे अनुमित वस्तु या साध्य का एक नियत सम्बन्ध रहता हैं । साधन या साध्य के नियत या अव्यभिचारी सम्बन्ध को 'व्याप्ति' कहते हैं । अनुमान में कम से कम तीन वाक्य होते हैं तथा अधिक से अधिक तीन पद होते हैं । इन पदों को पक्ष, साध्य तथा साधन (लिङ्ग) कहते हैं । 'पक्ष' उसे कहते हैं जिसमें लिङ्ग का अस्तित्व तो ज्ञात है और साध्य का अस्तित्व प्रमाणित करता है । 'साध्य' उसे कहते है जिसका अस्तित्व पक्ष में सिद्ध करना है । 'साधन' उसे कहते हैं जिसका साध्य के साथ नियत साहचर्य हो और जो पक्ष में वर्तमान रहे । जैसे— 'यह पर्वत वह्निमान् है, क्योंकि यह धूमवान् है । जो धूमवान् है वह वह्निमान् है ।' यहाँ पर्वत पक्ष है, वह्नि साध्य है तथा धूम साधन है । ३. ४. उपमान में संज्ञी के सम्बन्ध का ज्ञान होता है । सादृश्य-ज्ञान द्वारा जो संज्ञा या संज्ञी अर्थात् नाम और नामी का सम्बन्ध स्थापित होता है उसे 'उपमान' कहते हैं । उदाहरणार्थ यदि गवय का केवल नाम ज्ञात रहे तथा यह विदित रहे कि गवय का आकार प्रकार गौ के सदृश होता है तो गवय को अरण्य में प्रथम वार देखकर भी समझा जा सकता है कि यह गवय है । ऐसा ज्ञान उपमान द्वारा होता है । आप्त अर्थात् विश्वास योग्य पुरुषों की युक्तियों से अज्ञात वस्तुओं के सम्बन्ध में जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे 'शब्द' कहते हैं । ऐतिहासिक कहते हैं कि महाराज अशोक भारत के सम्राट् थे । इस कथन को हम स्वीकार करते हैं, यद्यपि हमारा अशोक के साथ कोई साक्षात्कार नहीं हुआ । यहाँ 'शब्द' ही प्रमाण है । नैयायिक इन चार के अतिरिक्त और कोई प्रमाण नहीं मानते, क्योंकि उनके अनुसार अन्य सभी प्रमाण इन्हीं चार प्रमाणों के अन्तर्गत हैं । न्यायदर्शन के अनुसार अधोलिखित विषय 'प्रमेय' कहे जाते हैं । आत्मा, देह, इन्द्रियाँ तथा उनके द्वारा ज्ञातव्य विषय, बुद्धि, मन, प्रवृत्ति, दोष, 24
SR No.022471
Book TitleShaddarshan Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan
Publication Year2002
Total Pages146
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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