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________________ -पृ. ७७] '. टिप्पण ३२५ जिस तरह वेद के किसी एक कर्ता का स्मरण नही है उसी तरह पिटकत्रय (सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्मपिटक ये बौद्ध ग्रन्थसंग्रह ) के किसी एक कर्ता का स्मरण नही है । बुद्ध तथा उन के श्रेष्ठ शिष्यों के उपदेशों-वार्ताओं का संग्रह बडे बडे भिक्षुसम्मेलनों में किया गया तथा उन्हीं को पिटक यह नाम दिया गया। उसी प्रकार पुराने ऋषिकुलों द्वारा रचित मन्त्रों का संग्रह कर उन्हें वेद यह नाम दिया गया है । पृष्ठ ७४-वेद के कर्ता का स्मरण नही है इस के उत्तर में बौद्ध कहते है कि अष्टक आदि ऋषि ही वेदमन्त्रों के कर्ता है-चिन्हें मीमांसक मंत्रद्रष्टा कहते हैं वे ही मन्त्रकर्ता हैं । अष्टक विश्वामित्र के पुत्र थे। उन के साथ वामक, वामदेव, वसिष्ठ, भारद्वाज, भृगु, जमदमि व अंगिरा इन ऋषियों के नाम 'मंतानं कत्तारो पवत्तारो' इस विशेषण के साथ पिटकग्रन्थों में कई बार आये है जिन में दीघनिकाय का तेविज्जसुत्त उल्लेखनीय है। अनुमान के रूप में इस उत्तर का उल्लेख धर्मकीर्ति ने किया है । बौद्धों के इस उत्तर के (जो ऐतिहासिक तथ्यों के बहुत निकट है) अतिरिक्त नैयायिक-वैशेषिकों का उत्तर है कि वेद के कर्ता ईश्वर है। जैन कहानी के अनुसार कालासुर नामक व्यन्तर देव ने लोगों को कुमार्ग पर लगाने के लिए वेदों की रचना की, है । इन तीनों का उल्लेख विद्यानन्द ने कर दिया है । - पृ. ७५--वैदिक परम्परा में विशिष्ट ऋषियों ने विशिष्ट ग्रन्थों का प्रणयन किया है अतः वेदाध्ययन की परम्परा अनादि नही है। इस युक्ति का उल्लेख मनुसूत्र के उदाहरण के साथ पात्रकेसरी ने किया है, उन्हों ने इस के साथ अन्य युक्तियों को भी प्रस्तुत किया है । ... पृ. ७७--'प्रजापतिर्वा इदमेक आसीत् ' इत्यादि वाक्य किसी ब्राह्मण ग्रन्थ का है । इस का उल्लेख श्रीधर ने भी किया है। १) प्रमाणवार्तिकवृत्ति १।२६९ स्मरन्ति सौगता वेदस्य कर्तृन् अष्टकादीन् । २) हरिवंशपुराण पर्व २३ श्लो. १४०-४७ हिंसानोदनयानार्षान् क्रूरान् क्रूरः स्वयंकृतान् । वेदानध्यापयन् विप्रान् क्षिप्रं देवोऽनयद् वशम् ।। प्रवर्तिताश्च ते वेदा महाकालेन कोपिना । विस्तारितास्तु सर्वस्यामवनौ पर्वतदिभिः ॥ इत्यादि । ३) तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक पृ. २३८ तत्कारणं हि काणादाः स्मरन्ति चतुराननम् । जैनाः कालासुरं बौद्धास्त्वष्टकान् सकलाः सदा ।। ४) श्लोक १४ श्रुतेश्च मनुसूत्रवत् पुरुषकर्तृकैव श्रुतिः॥ ५) न्यायकन्दली पृ. २१६
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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