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________________ २९६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [८८ षडवयवापत्तिः षड्विभागापत्तिर्वा । षडवयवापत्तिश्चेत् तदवयवा' एव परस्परं संबद्धपरमाणव इति तेषां संबन्धसिद्धिः। अथ तेषामप्येकदेशेन संबन्धे प्रत्येकं षडवयवापत्तिरिति चेत् तर्हि तदवयवा एव परमाणव इति तेषां परस्परं संबद्धत्वसिद्धिः। इत्यादिक्रमेण अवयवैरनारब्धानामेत्र परमाणुत्वं तेषामेकदेशेन संबन्धेऽपि न षडवयवापत्तिः। ततोऽपि सूक्ष्मावयवानामसंभवात् । अथ षडंशतापत्तिरिति षड्विभागापत्तिरिति चेन। अविभागिपरमाणोरपि पूर्वपश्चिमदक्षिणोत्तरोधिोदिगभागस्य विरोधा. भावात् । तस्मादवयवैरनारब्धाविभागिसूक्ष्मपरमाणूनां परस्परं संबन्धेऽपि न कश्चिद् दोष इति समर्थितं भवति । षण्णां समानदेशत्वं नोपपद्यत इत्यस्माभिरप्यग्रे निषेत्स्यत इत्यत्रोपरम्यते। तथा च परमाणूनां परस्परसंबन्धसंभवादवयवि द्रव्यमपि सुखेन जाघटयते। तत्र यदप्यवादीत्-यग्रहे यन्न गृह्यते तत् ततो नार्थान्तरं यथा वृक्षाग्रहे अगृह्यमाणं वनं न गृह्यते च तन्त्वग्रहे पटः तस्मात् ततो एक परमाणु जितना ही होगा ।' किन्तु यह दूषण ठीक नही है। परमाणुओं का परस्पर एक भाग में सम्बन्ध मानने में कोई दोष नही आता । परमाणु के छह अवयय मानें तो परस्पर सम्बद्ध छह अवयवों का-परमाणुओं का-पिण्ड सिद्ध होता ही है। फिर उन अवयवों के भी सम्बन्ध के लिए छह भाग मानने अवश्य होंगे-यह आपत्ति हो सकती है। किन्तु परमाणु वे ही होते हैं जिन के अवयव नही होते वे अखण्ड होते हैं। अखण्ड होने पर भी एक परमाण के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर तथा नीचे की सतहें होना सम्भव है-इन में से एक सतह का दूसरे परमाणु की एक सतह से सम्बन्ध होने में कोई विरोध नही हैं । अतः परमाणु निरवयव हैं इसलिए सम्बन्धरहित हैं इस कथन में कोई सार नही है । छह अणुओं का एकही प्रदेश नही होता यह हम भी आगे स्पष्ट करेंगे । परमाणुओं के सम्बन्ध सहित होने से अवयवी द्रव्यों का अस्तित्व मानना भी आवश्यक है । इस के विरोध में यह अनुमान दिया है कि वस्त्र तन्तुओं से भिन्न नही क्यों कि तन्तुओं के ज्ञान के बिना वस्त्र का १ ते परमाणवः च ते अवयवाश्च तदवयवाः । २ तर्हि किं संबंध एव । ३ षट्सु दिक्षु स्थितानामणूनां मध्यस्थिते अणौ अधीनत्वं समानदेशत्वम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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