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________________ २९५ -८८] बौद्धदर्शनविचारः विजातीयव्यावृत्ता अपि सजातीयव्यावृत्ता न भवन्ति इत्यङ्गीकर्तव्यम् । तथा परस्परमसंबद्धा इत्ययुक्तम् । जघन्यगुणपरमाणून विहाय अन्येषां परस्परसंबन्धसंभवात्। कुतः संबन्धयोग्यस्निग्धरूक्षगुणसद्भावात् । तदपि कुतो ज्ञायते इति चेत् वीताः परमाणवः स्निग्धरूक्षगुणवन्तः पुद्गलत्वात् नवनीताञ्जनादिवदिति प्रमाणादिति ब्रूमः। ननु तथापि षट्केन युगपद् योगात् परमाणोः षडंशता। षण्णां समानदेशत्वे पिण्डः स्यादणुमात्रकः॥ (विज्ञप्तिमात्रतासिद्धिः १२) इति दूषणद्वयं नापानामतीति चेन्न। परमाणूनां परस्परमेकदेशेन संवन्धेङ्गीक्रियमाणे कस्यापि दोषस्यावकाशासंभवात्। अथ एकदेशेन संबन्धे परमाणोः षडंशतापत्तिरिति चेत् षडंशतापत्तिरिति कोऽर्थः । स्कन्ध कहते हैं । ज्ञान, पुण्य, पाप आदि की वासना को संस्कार स्कन्ध कहते हैं। _' अब बौद्धों के इस स्कन्ध कल्पना का क्रमशः विचार करते हैं। रूप आदि परमाणु परस्पर बिलकुल अलग हैं यह बौद्धों का कथन ठीक नही । सब परमाणु सत् हैं यह उन में समानता है- यदि वे सब संत् न हों तो विद्यमान ही नही रहेंगे । इसी प्रकार वे सब द्रव्य हैं-अद्रव्य नही हैं । सब रूप परमाणुओं में रूपात्मक होना समान है। अतः परमाणु विजातीय परमाणुओं से अलग होने पर भी सजातीय परमाणुओं से समानता भी रखते हैं यह मानना चाहिए। परमाणु सम्बन्धरहित होते हैं यह कथन भी अयुक्त है। सिर्फ जघन्य गुण परमाणु ही सम्बन्ध रहित होते है । बाकी परमाणुओं में स्निग्ध तथा रूक्ष गुणों का अस्तित्व है अतः वे परस्पर सम्बद्ध होते हैं। पुद्गल परमाणुओं में स्निग्धता तथा रूक्षता होती है यह मक्खन, काजल आदि के उदाहरणों से स्पष्ट है। परमाणओं में सम्बन्ध न मानने का कारण बौद्धों ने यह दिया है-'छह परमाणुओं का सम्बन्ध एक साथ होता हो तो प्रत्येक परमाणु के छह भाग मानने पडेंगे। तथा छहो का एक ही प्रदेश मानने पर सब का पिण्ड .... १ परपामवः । २ परणामवश्व परमाणूनां स्निग्धरूक्षगुणाश्च तेषां सद्भावात् । ३ परमाणूनां षट्केन. ..
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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