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________________ २९० विश्वतत्त्वप्रकाशः [८७एकस्मिन् समये समुत्पत्तिप्रसंगात्। तथा च तदनन्तरसकलसमयेषु अर्थक्रियाशन्यत्वेनासत्वप्रसंगात्। तस्मात् क्षणिकपदार्थे क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाकारित्वासंभवेन सत्त्वासंभवात् हेतोः स्वरूपासिद्धत्वं समर्थितम् । [८७ प्रत्यभिज्ञाप्रामाण्यम् ।] तस्माद् दीपादयो वीताः पदार्था अक्षणिकाः स एवाहं स एवायमिति प्रत्यभिज्ञाविषयत्वात् । यः क्षणिकः स प्रत्यभिज्ञाविषयो न भवति यथा प्रदीपशिखानिर्गतो धूमः, तथा चायं तस्मात् तथेति प्रतिपक्षसिद्धेः। ननु प्रत्यभिज्ञानस्य प्रामाण्याभावात् न ततोऽक्षणिकत्वसिद्धिरिति चेन्न । वीतं प्रत्यभिज्ञानं प्रमाणमेव अबाधितविषयत्वात् निर्दुष्टप्रत्यक्षवदिति तस्य प्रामाण्यसिद्धः। अथ प्रत्यभिज्ञानस्याबाधितविषयत्वमसिद्धमिति चेन्न । तदविषयस्य बाधकासंभवात् । न तावत् सविकल्पकं प्रत्यक्षं बाधकं तस्य स्थिरार्थग्राहकत्वेन साधकत्वात् । नापि निर्विकल्पकं प्रत्यक्षं बाधक तस्यैवाभावात् । भावे वा तस्य स्थिरार्थवार्तानभिज्ञत्वेन बाधकत्वानुका क्षण एकही हो तो सब कार्य अपने कारण के ही समय हो जायेंगेकारण का समय और कार्य का समय भिन्न नही रहेगा। अतः एकही समय सब कार्य हो जाने पर बाकी समयों में कोई कार्य नही होगा-सब शून्य होगा । अतः क्षणिक पदार्थों में कार्यकारण सम्बन्ध भी सम्भव नही है । अतः जो सत् हैं वे क्षणिक हैं यह कथन अयोग्य है । ८७. प्रत्यभिज्ञा प्रामाण्य-मैं वही हूं, ये पदार्थ वही हैं-इस प्रकार प्रत्यभिज्ञान से भी दीपादि पदार्थों का एक से अधिक क्षणों में अस्तित्व सिद्ध होता है । जो पदार्थ एक क्षण में नष्ट हो जाता है उसे बाद में ' यह वही है' इस प्रकार पहचानना सम्भव नही । बौद्ध प्रत्यभिज्ञान को प्रमाण नही मानते किन्तु उन का यह मत उचित नहीं है। प्रत्यभिज्ञान प्रमाण है क्यों कि उस का विषय निदोष प्रत्यक्ष के समान अबाधित होता है- जो ज्ञान बाधित नही होता उसे अवश्य ही प्रमाण मानना चाहिये। प्रत्यभिज्ञान में सविकल्पक प्रत्यक्ष बाधक नही हो सकतासविकल्पक प्रत्यक्ष से स्थिर पदार्थों का ज्ञान होता है अत्त: वह प्रत्यभि १ सस्वात् इति हेतोः। २ अयं पदार्थः प्रत्यभिज्ञानविषयः तस्मात् तथेति अक्षणिकः । ३ निर्विकल्पकस्य भावे ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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