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________________ २७४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [८३ अथ उपादानग्रहणात् सत् कार्यमिति चेन्न। वीतं महदादिपटादि उपादानग्रहणरहितं सर्वदा विद्यमानत्वात् आत्मवदिति हेतोरसिद्धत्वात् । अथ एकस्मात् कारणात् सर्वकार्यसंभवाभावात् सत् कार्यमिति चेन्न । हेतो'र्वाद्यसिद्धत्वात् । कुतः तन्मते एकस्मिन्नपि कारणे सकलकार्यसद भावेन सर्वसंभवसद्भावात् । ननु शक्तस्य शक्यकरणात् सत्कार्यमिति चेत् न । वीतं महदादिपटादिकं शक्तकारणव्यापारापेक्षं न भवति सर्वदा विद्यमानत्वात् आत्मवदिति शक्तस्य कारणस्य शक्यकरणाभावेन हेतोर. सिद्धत्वात् । ननु कारणसभावात् सत्कार्यमिति चेन्न। वीतमविद्यमान कारणकं सर्वदा विद्यमानत्वात् आत्मवदिति कारणसद्भावाभावेन कार्य उपादान से उत्पन्न होता है अतः वह ( उपादान में ) विद्य'मान होता है यह हेत भी ठीक नही । महत् आदि कार्य यदि ( उपादान में ) विद्यमान ही है तो वे उपादान को ग्रहण कर उत्पन्न नही हो सकते । जो सर्वदा विद्यमान है उस की उत्पत्ति सम्भव नही। अतः उपादानग्रहण यह हेतु भी सत्कार्यवाद को सिद्ध नही करता । एकही कारण से सब कार्य सम्भव नही होते। योग्य कारण से योग्य कार्य होते हैं - अतः कारण में कार्य का अस्तित्व माने यह भी सम्भव नही क्यों कि सांख्य मत में एक ही मूल कारण - प्रकृति-से सब कार्यों का उद्भव माना है । अतः एक कारण से सब कार्य सम्भव नही यह वे किस प्रकार कह सकते हैं ? शक्त ( सामर्थ्ययुक्त ) कारण से शक्य कार्य उत्पन्न होता है अतः सब कार्यों का अस्तित्व कारणों में होता है यह कथन भी ठीक नही। यदि महत् आदि कार्य विद्यमान ही होते हैं तो उनकी उत्पत्ति के लिये किसी शक्त कारण की क्या आवश्यकता है ? इसी प्रकार कारण का सद्भाव यह हेतु भी कार्य के अस्तित्व को सिद्ध नही करता – यदि कार्य विद्यमान ही हो तो उस के उत्पत्ति-कारण का कोई प्रश्न नही उठता । तात्पर्य यह की जिस प्रकार आत्मा सर्वदा विद्यमान है अतः उस के उत्पत्तिकारण या कार्य का प्रश्न नही उठता उसी प्रकार कार्य भी सर्वदा विद्यमान हो तो उस का उत्पत्ति-कारण असम्भव होगा। यहां सांख्यों का मत है कि महत् आदि कार्य अपने अपने कारणों में विद्यमान तो होते हैं किन्तु जब उन का आविर्भाव होता है तब उन्हें उत्पन्न हुआ कहा जाता । १ सर्वसंभवाभावादिति हेतोः ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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