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________________ -८०] सांख्यदर्शनविचारः २६१ संभवस्य प्रागेव प्रमाणैः प्रतिपादितत्वात् । तस्मान्मीमांसकमते मोझो नास्तीति निश्चीयते। [ ८०. सांत्यसंमता सृष्टिप्रक्रिया।] अथ मतम् सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टमवष्टम्भकं चलं च रजः। गुरु वरणकमेव तमः साम्यावस्था भवेत् प्रकृतिः॥ [सांख्यकारिका १३] तत्र यदिष्ट प्रकाशकं लघु तत् सत्त्वमुच्यते। सवोदयात् प्रशस्ता एव परिणामा जायन्ते । यच्च चलमवष्टम्भकं धारकं ग्राहकंवा तद् रज इति कथ्यते। रजस उदयाद् रागपरिणामा एव जायन्ते । यद् गुरु आवरणकमशानहेतुभूतं तत् तम इति निरूप्यते। तमस उदयाद् द्वेषाज्ञानपरिणामा एव जायन्ते । सस्वरजस्तमसा त्रयाणां साम्यावस्था प्रकृतिर्भवेत् । प्रकृतेमहांस्ततोऽहंकारस्तस्माद् गणश्च षोडशकः। तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्च भूतानि ॥. [सांख्यकारिका २२] मोक्ष के लिये तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान आवश्यक है और प्राभाकर मत में वह सम्भव नही यह पहले स्पष्ट कर चुके हैं। अतः मीमांसक मत के अनुसरण से मुक्ति सम्भव नही है। ८०. सांख्यों की सृष्टि प्रक्रिया--अब सांख्य मत का विचार करते हैं । इन के मत से जगत में सत्व, रजस, तमस् ये तीन गुण हैं। जो हलका, प्रकाशदायी हो वह सत्त्व है। जो चंचल, रोकनेवाला हो वह रजस् है । जो भारी, आच्छादित करनेवाला हो वह तमस् है। इन तीन गुणों की समता की अवस्था को प्रकृति कहते हैं। सत्र गुण के उदय से परिणाम प्रशस्त होते हैं। रजस् गुण के उदय से रागयुक्त परिणाम होते हैं । तमस् गुण के उदय से द्वेष तथा अज्ञानरूप परिणाम होते हैं। इन तीनों की साम्य-अवस्था प्रकृति कहलाती है। इसी को जगत् की उत्पादिका, प्रधान, बहुधानक आदि नाम दिये गये हैं। प्रकृति से महान् उत्पन्न होता है - जन्म से मरण तक विद्यमान रहनेवाली बुद्धि को महान् कहते हैं । महान् से अहंकार उत्पन्न होता है -. Namnamom १ निरीश्वरसांख्यस्य ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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