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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः ग्रन्थों से उद्धृत या प्रभावित अनुमानों में सर्वज्ञ के अस्तित्व में बाधक प्रमाणों का अभाव प्रमुख है (पृ. २५)। वेदप्रामाण्य की तलना में त्रिपिटक का उदाहरण वादीभसिंह की स्याद्वादसिद्धि से उद्धत किया है (पृ. ७५ )। ईश्वर सशरीर या अशरीर दोनों अवस्थाओं में जगत का कर्ता नही हो सकता इस अनुमान का विवरण विद्यानन्द की आप्तपरीक्षा पर आधारित है (पृ. ५०-५४)। आकिंचित्कर हेत्वाभास का लक्षण माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख से उद्धत किया है (पृ. ३ )। अशरीर अवस्था में जीव के अस्तित्व का समर्थन देवसेन के एक गाथांश से किया है जो तत्त्वसार में है (पृ. १५) । नेमिचन्द्र के गोम्मटसार से द्रव्यमन का लक्षणवर्णन उद्धृत किया है (पृ.२०५) । अनन्तवीर्य की सिद्धिविनिश्चयटीका से सर्वज्ञसमर्थक अनुमान उद्धृत किया है । (पृ. ३१)। प्रभाचन्द्र के ग्रन्थों से अनेक अनुमान लिए हैं जिन में सर्वज्ञ का समर्थन (पृ.३५),अदृष्ट का समर्थन (पृ. २२), इन्द्रियों का स्वरूप विचार (पृ.२२४) आदि प्रमुख हैं। महासेन के स्वरूपसम्बोधन से एक श्लोकार्ध उद्धृत किया है जिस में जो कर्ता है वही फल का भोक्ता होता है यह सनातन सिद्धान्त बतलाया है (पृ. ९)। इस के अतिरिक्त अन्य सादृश्यों का विवरण टिप्पणों में प्रस्तुत किया है। जैनेतर कृतियां-वेदप्रामाण्य की चर्चा में लेखक ने ऋग्वेद की चार ऋचाएं उद्धृत की हैं (पृ. ८१ तथा ८३ )। इसी प्रकरण में अश्वमेध का फलसूचक वाक्य तथा वेदनिर्मिति का सूचक वाक्य किसी ब्राह्मण ग्रन्थ से उद्धृत किये हैं (पृ. ९७ व ७७ )। निरर्थक वाक्यों के उदाहरण तैत्तिरीय आरण्यक तथा आपस्तम्ब श्रौतसूत्र से दिये हैं (पृ. ८५)। वेद की शाखाओं के प्रवर्तक के रूपमें आपस्तम्ब, बौधायन, आश्वलायन, कण्व तथा याज्ञवल्क्य का नामोल्लेख किया है (पृ. ७५-७६) । वेद का अर्थ जानने का महत्व निरुक्त के एक पद्य से बतलाया है (पृ. ९७)। सर्वज्ञ के अस्तित्व के विषय में मुण्डक तथा कठ उपनिषत् के वाक्य उद्धत किये हैं (पृ. २८)। वेदानुयायी दार्शनिकों में परस्पर मतभेद बतलाते समय तैत्तिरीय, छान्दोग्य तथा श्वेताश्वतर उपनिषत् के वाक्य दिये
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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