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________________ प्रस्तावना ऐसा उन का मत है। किन्तु नित्य आत्मा का अस्तित्व प्रत्यभिज्ञान प्रमाण से तथा प्रतिदिन के व्यवहार से भी प्रतीत होता है। आत्मा न हो तो मुक्ति का प्रयास व्यर्थ होगा तथा पुनर्जन्म को कोई अर्थ नही रहेगा। बौद्धों ने निर्वाण मार्ग के रूप में चार आर्यसत्य और सम्यक् दृष्टि आदि आठ अंग बतलाये हैं। किन्तु यदि मुक्ति जिसे प्राप्त होती है उस आत्मा को ही वे नही मानते तो मुक्ति के मार्ग का कोई अर्थ नही रहता । क्षणिकवाद के ही कारण बौद्ध प्रत्यक्ष ज्ञान को निर्विकल्पक मानते हैं। किन्तु नाम, जाति, संख्या आदि कल्पनाओं से सहित सविकल्पक प्रत्यक्ष का अस्तित्व तथा प्रामाण्य भी अवश्य मानना चाहिए (पृ. २८७-३०५)। ___ इस प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ में वैदिक तथा अवैदिक दोनों प्रकार के प्रमुख दर्शनों से जैन दर्शन के मतभेद तथा समानताओं का संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट चित्रण प्रस्तुत किया गया है । ९. लेखक द्वारा उपयुक्त सामग्री जैसा कि स्वाभाविक ही है- भावसेन ने विभिन्न दर्शनों के पूर्वपक्ष तथा उत्तरपक्ष लिखते समय पूर्ववर्ती आचार्यों की कृतियों का पर्याप्त उपयोग किया है । हम यहां समयक्रम से उन प्रमुख कृतियों का निर्देश करेंगे जो स्पष्टतः लेखक के सन्मुख रही हैं। जैन कतियां - लेखक ने पुद्गल का लक्षण बतलाते समय उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र का एक सूत्र उद्धृत किया है (पृ. २२२)। सर्वज्ञ का अस्तित्व सिद्ध करनेवाला अनुमान तथा बाह्य पदार्थों के अस्तित्व का विधान समन्तभद्र की आप्तमीमांसा से उद्धृत किये हैं (पृ. ३६ व ११३ ) । वेद पुरुषकृत हैं क्यों कि उन में ऋषियों आदि के नामोल्लेख हैं यह तर्क पात्रकेसरिस्तोत्र से प्रभावित है (पृ. ८९)। पूज्यपाद के समाधितन्त्र से दो श्लोक उद्धृत किये हैं (पृ.६५ व २३८), पहले में शरीर में परमाणुओं के आवागमन का वर्णन है तथा दूसरे में शरीर के कार्यों में इच्छा और द्वेष की अवश्यम्भाविता बतलाई है । अकलंक के १ इन के समयादि के बारे में विवरण प्रस्तावना के अगले भाग 'नैन तार्किक साहित्य' में दिया है। वि.त.प्र.२
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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