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________________ -६६ ] गुणविचारः २२३ वाय्वादीनां पुद्गलत्वं न स्यात् तेषु गन्धरसरूपादीनामभावादिति चेन्न । तेषु गन्धरसरूपादीनामनुभूतानां प्रमाणप्रतिपन्नत्वेन सद्भावात् । तथा हि। आप्यं गन्धंवद् भवति रसवत्वात् रूपवत्त्वात् स्पर्शवत्त्वाच पार्थिव. चदिति आप्यस्य गन्धवस्वसिद्धिः । तथा तेजोद्रव्यं गन्धरसवत् रूपवत्वात् स्पर्शवत्वात् पृथ्वीवदिति तेजोद्रव्यस्य गन्धरसवत्त्वसिद्धिः। तथा वायुद्रव्यं गन्धरसरूपवत् स्पर्शवत्त्वात् पार्थिववदिति वायोर्गन्धरसरूपवत्त्व. सिद्धिः। तथा कार्मणद्रव्यादिकं गन्धरसरूपस्पर्शवद् भवति पुद्गलद्रव्यत्वात् पृथिवीवदिति कर्मद्रव्यादीनामपि गन्धरसरूपस्पर्शवत्वसिद्धिरिति । ननु तेषां गन्धरसरूपस्पर्शादिमत्त्वे क्वचित् कदाचिद् दर्शनादिगोचरत्वं स्यादिति चेन्न। सर्वदा अनुद्भूतरूपादिमखेन बाह्येन्द्रियग्राह्यस्वासंभवात् नयनरश्मिवत् । यथा नयनरश्मीनां तेजोद्रव्यत्वेन रूपस्पर्श सद्भावेऽपि क्वचित् कदाचिदपि दर्शनस्पर्शनगोचरत्वाभावः तथा कार्मणादिद्रव्याणां रूपादिद्भावेऽपि न बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वं प्रसज्यते। कर्मणां पौद्गलिकत्वं च प्रागेव प्रमाणात् समर्थितमेव । तथा च धर्माधर्मशब्दसंख्यापृथक्त्वव्यतिरिक्तरूपादीनां बुद्धयादीनां च यथोक्तक्रमण गुणत्वं बोभूयते। है । तो क्या सिर्फ पृथ्वी-परमाणु ही पुद्गल हैं ? उत्तर यह है कि हमारे मत के अनुसार स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण ये चारों गुण पृथ्वी, जल, तेज, वायु इन सभी के परमाणुओं में होते हैं, अन्तर सिर्फ इतना है कि जल आदि में गन्ध आदि गुण इन्द्रियग्राह्य नही होते । स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण ये चारों गुण सहभावी हैं- जहां एक होता है वहां सभी होते हैं । अतः जल आदि परमाणुओं में भी गन्ध आदि गुणों का अस्तित्व मानना चाहिए । इसी प्रकार कार्मण पुद्गलों में भी चारों गुणों का अस्तित्व मानना चाहिए। न्याय मत में जिस प्रकार चक्षु के किरण अदृश्य माने हैं-यद्यपि तेज द्रव्य से निर्मित होने के कारण इन किरणों में रूप तथा स्पर्श गुण होते हैं-उसी प्रकार कार्मण पुद्गल आदि में ये गुण इन्द्रियग्राह्य नही होते ऐसा समझना चाहिए। इन के अतिरिक्त रूप आदि तथा बुद्धि आदि जो गुण न्यायमत में माने हैं उन के बारे में हमारा कोई विवाद नही है। १ यथासंख्यम् । २ अदृष्टद्रव्यम् । ३ कर्मद्रव्यादीनाम् । ४ एतैः पञ्चभिः विना।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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