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________________ २२० विश्वतत्त्वप्रकाशः [६४भाधारत्वाभावादव्यापकं लक्षणम् । तस्मादवयवावयविनोर्गुणगुणितो जातिव्यक्त्योः क्रियातदक्तोर्भवदुक्ताधार्याधारभावाभावादसंभवदोषदुष्टत्वं समवायस्य स्वरूपलक्षणप्रवृत्त्यसंभवात् तस्याभावो निश्चीयते। . तथा च अवयवावयविनोर्गुणगुणिनोः सामान्यविशेषयोः क्रियातद्वतोश्च स्वभावसंबन्धः कथंचिद् भेदामेदश्च स्वीकर्तव्यः। अत्यन्तं मेदे तौ' देशभेदेनोपलभ्येयाताम् अत्यन्तं भिन्नत्वात् मेरुविन्ध्यवत्। तौ कालमेदेनोपलभ्येयाताम् अत्यन्तं भिन्नत्वात् रामशंखचक्रवर्तिवत् । इति बाघकसद्भावादत्यन्तं मेदो नाङ्गीकर्तव्यः। अत्यन्तममेदे तयोरन्यतर पवर स्थान द्वयं व्यवतिष्ठतेः। इति पक्षद्वयेऽपि बाधकसद्भावात् कथंचिद् मेदाभेदः समार्थतो भवति। एवं परपरिकल्पितसमवायपदार्थो नोपपनीपद्यते। कथन भी उचित नही- तन्तु वस्त्र को नीचे गिरने से रोकते हैं यह नही कहा जा सकता । गुण, जाति, क्रिया इन में वजन ही नही होता अतः इन के नीचे गिरने का प्रश्न ही नही उठता । जो पृथक क्रिया को रोके वह आधार है यह कथन भी उचित नही । गुण.जाति, क्रिया ये द्रव्य नही हैं, इन में क्रिया ही संभव नही अतः क्रिया को रोकने का प्रश्न ही नही उठता । तात्पर्य-किसी भी प्रकार से आधार्य और आधार का सम्बन्ध समवाय संभव नही है। उपर्युक्त सब विवेचन को देखते हुए अवयव, अवयवी आदि में स्वभावतः सम्बन्ध मानना चाहिए । तथा इन में अंशतः भेद और अंशतः अभेद मानना चाहिए। यदि इनमें पर्ण भेद मानें तो मेरु और विन्ध्य पर्वतके समान उन का प्रदेश भी भिन्न प्रतीत होना चाहिए । तथा राम और शंख चक्रवर्ती के समान इन का काल भी भिन्न होना चाहिए। ऐसा होता नही है, अत: इन में भेद अंशतः है -- पूर्णतः नही। इसी तरह र्णताः अभेद मानना भी उचित नही–यदि पूर्णतः अभेद हो तो ये दो वस्तुएं हैं यह कहना असंभव होगा अतः गण, गुणी आदि में अंशतः भेद और अंशतः अभेद मानना चाहिए। तथा उन में स्वभावतः सम्बन्ध मानना चाहिए । इस से समवाय सम्बन्ध की कल्पना व्यर्थ सिद्ध होती है। २ एक एव।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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