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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [४१ नान्यस्येति विभागोपायाभावात् । तस्मादात्मनः कर्मोदयात् संसारित्वमिच्छता जन्ममरणस्वर्गनरकादिप्राप्तिस्तत्फलभुक्तिश्च तस्यैवात्मनोऽभ्युपगन्तव्या । ततश्च आत्मा सर्वगतो न भवतीति निश्चीयते । तथा हि। आत्मा सर्वगतो न भवति जन्ममरणस्वर्गनरकादिप्राप्त्यन्यथानुपपत्तेः । तथा आत्मा सर्वगतो न भवति द्रव्यत्वस्यावान्तरसामान्यवत्त्वात् अश्रावणविशेषगुणाधिकरणत्वात्, शरीरात्मसंयोगसंयोगित्वात् शरीरवत् , अस्मदादिमानसप्रत्यक्षग्राह्यत्वात् सुखादिवत् , शानासमवाय्याश्रयत्वात्र मनोवत्। [५८. मनसः विभुत्वाभावः ।। ननु मनोवदिति साध्यविकलो दृष्टान्तः, भाट्टपक्षे मनोद्रव्यस्य ज्ञाना. समवाय्याश्रयत्वेऽपि असर्वगतत्वाभावात्। कुतः। भाट्टैमनोद्रव्यस्य कथन भी ठीक नही । जब न्याय मत में सभी आत्मा सर्वगत और नित्य माने हैं तथा सभी मन भी निन्य माने हैं तो सब आत्माओं का सब मनों से संयोग मानना ही होगा। एक आत्मा का मन से संयोग होता है और दूसरे का नही होता ऐसा भेद करने का कोई कारण नही है। तात्पर्य - यदि आत्मा को कर्मोदय से संसारी मानना हो तो जन्म, मरण, स्वर्ग, नरक आदि आत्मा के ही होते हैं ऐसा मानना चाहिए। यह तभी संभव है जब आत्मा सर्वगत न होकर शरीर-मर्यादित होगा। आत्मा सवंगत नही हो सकता क्यों कि वह द्रव्यत्व से भिन्न सामान्य ( आत्मत्व ) से युक्त है, ऐसे विशेष गुणों से युक्त है जो श्रवणेन्द्रिय से ज्ञात नही होते, शरीर के संयोग से युक्त है, सुख आदि के समान हमें मानस प्रत्यक्ष से ज्ञात होता है तथा मन के समान ज्ञान का असमवायी आश्रय है। ५८. मन विभु नही है-उपर्युक्त अनुमान में आत्मा के सर्वगत न होने में मन का जो उदाहरण दिया है उस पर भाट्ट मीमांसक आपत्ति करते हैं। उनके कथनानुसार मन ज्ञान का असमवायी आश्रय तो १ आत्मा आत्मत्वसामान्यवान् । २ विशेषगुणाधिकरणत्वात् इत्युक्ते आकाशेन व्यभिचारः तद्व्यपोहार्थम् अश्रावणादोपादानम् । ३ ज्ञानमेव असमवायिकारणम् । ४ मनोऽपि ज्ञानासमवाय्याश्रयम् अतःसर्वगतं न ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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