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________________ –५७ ] आत्म विभुत्वविचारः १९९ करणं न भोक्तृ ज्ञानरहितत्वात् अचेतनत्वात् अणुपरिमाणत्वात् परमाणुवत्, ज्ञानकरणत्वात् दुःखत्वात् इन्द्रियत्वात् चक्षुर्वत् इति । एवं लिङ्ग'शरीरस्यापि अदृष्टविशिष्टत्वादिकं न संभवति । तथा हि लिङ्गशरीरं नादृष्टविशिष्टं शरीरत्वात् मूर्तत्वात् सावयवत्वात् स्पर्शादिमत्त्वात् पार्थिवशरीरचत् इत्यादिक्रमेण यथासंभवं प्रयोगाः कर्तव्याः । तयोस्तत् सर्वसंभवे आत्मपरिकल्पना वैयर्थ्यप्रसंगात् । अथवा आत्मपरिकल्पनायामपि ततो भिन्नस्यान्तःकरणस्य जन्ममरणस्वर्गनरकादिप्राप्तिस्तत् फलभुक्तिश्च यदि स्यात् तदा आत्मनः संसारित्वं न स्यात् । ननु तदन्तःकरणसंयोगादात्मनः संसारित्वमिति चेत् तर्हि मुक्तात्मनामपि तदन्तःकरणसंयोगसद्भावात्रे संसारित्वं प्रसज्यते । ननु यस्य जीवस्यादृष्टेन यदन्तःकरणसंयोगो विधीयते तदन्तःकरणसंयोगात् तस्य जीवस्यैव संसारित्वं नान्यस्येति चेन्न । सर्वेषा - मात्मनां सर्वगतत्वे नित्यत्वे च सर्वमनोद्रव्याणामपि नित्यत्वे च सर्वेषामात्मनां सर्वान्तःकरणैः सर्वदा संयोगसद्भावात् । यस्यादृष्टेन यदन्तःकरणसंयोगो विधीयते तदन्तःकरणसंयोगात् तस्य जीवस्यैव संसारित्वं नुसार मन नित्य है, अणु आकार का है तथा विशेष गुणों से रहित है अतः काल एवं परमाणु के समान मनको भी जन्म, मरण नही हो सकते । मन ज्ञानरहित, अचेतन तथा अणु आकार का है अतः परमाणु के समान वह भी भोक्ता नही हो सकता । मन के समान लिंगशरीर में भी अदृष्ट से युक्त होना, जन्म, मरण आदि संभव नही हैं । लिंगशरीर मूर्त है, सावयव है, स्पर्श आदि से सहित है, पार्थिव है अतः वह अदृष्ट से युक्त हो सकता । यदि मन या लिंगशरीर के जन्म, मरण आदि माने जाते हैं तो आगा की कल्पना व्यर्थ होती है । अथवा आत्मा की कल्पना करने पर भी वह संसारी नही होगा, मनही संसारी होगा । मन के संयोग से आत्मा को संसारी माना जाता है यह कथन भी ठीक नही । मन का संयोग मुक्त आत्मा में भी संभव है किन्तु मुक्त आत्मा संसारी नही होते । जीव के अदृष्ट से जिस मन का संयोग होता है उसी मन के संयोग से वह जीव संसारी होता है यह १ जैनमते कार्मणशरीरम् । २ अंतःकरणलिङ्गशरीरयोः स्वर्गगमननरकादिसर्व संभवे । ३ व्यापकस्य आत्मनः अन्तःकरणं मुक्ते पुंसि वर्तते व्यापकत्वात् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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