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________________ -५६ ] आत्मविभुत्वविचारः इति चेत् तर्हि एतच्छरीरेन्द्रियान्तःकरणानां स्वकीयत्वं कौतस्कुतम् । स्वकीयादृष्टकृतत्वात् स्वकीयत्वमिति चेत् तर्हि तददृष्टस्थापि स्वकीयत्वं कौतस्कुतम् । स्वकीयशरीरेन्द्रियान्तःकरणव्यापारण कृतत्वादिति चेत् तर्हि इतरेतराश्रयः। अथ तच्छरीरादिकं प्राक्तनस्वकीयादृष्टकृतं तदपि प्राक्तनस्वकीयशरीरादिकृतमित्याद्यङ्गीकारान्नेतरेतराश्रय इति चेन्न। तच्छरीरादिसंततेरदृष्टादिसंततेश्च अविशेषेण सर्वात्मसंबन्धे स्वकीय. त्वानुपपत्तेः । स्वस्मिन् समवेतादृष्टादयः स्वकीया इति समवायात् स्वकी. यत्वं भविष्यतीति चेन्न । तस्य नित्यसर्वगतैकत्वेन सर्वात्मसाधारणत्वात् तन्नियामकत्वानुपपत्तेः । तस्मादात्मनां सर्वगतत्वाङ्गीकारे शरीरेन्द्रियान्तःकरणानामदृष्टादीनां च स्वकीयपरकीयत्वविभागोपायाभावेन स्वात्मा सर्वत्र तथा प्रतीयेत । न चैवं प्रतीयते । तस्मात् स्वस्य सर्वगतत्वाभावो मानसात्यक्षेणैव निश्चीयत इति कालात्ययापदिष्टो हेत्वाभासो निश्चितः स्यात् । एतेन आत्मा सर्वगतः अनणुत्वे सति नित्यद्रव्यत्वात् अनणुत्वे सति निरवयवद्रव्यत्वात् अनणुत्वे सत्यखण्डद्रव्यत्वात् नित्यत्वे सति द्रव्यानारम्भकद्रव्यत्वात् अनणुत्वे सत्यकारणकद्रव्यत्वात् अनणुत्वे सत्यशरीर स्वकीय है यह निश्चय कैसे होता है। अपने अदृष्ट से निर्मित शरीर स्वकीय कहलाता है यह उत्तर भी पर्याप्त नही । प्रश्न होता है कि अपना अदृष्ट किसे कहा जाय ? अपने शरीर से किया हुआ अदृष्ट अपना है यह कहें तो परस्पराश्रय होगा - अदृष्ट के स्वकीय होने से शरीर स्वकीय माना और शरीर के स्वकीय होने से अदृष्ट स्वकीय माना। मून्न प्रश्न यह है जब सभी अदृष्ट और सभी शरीरों में कोई आत्मा सम्बन्धित है - व्यापक है तब किसी एकही शरीर या अदृष्ट को उस का स्वकीय क्यों माना जाय ? जिस आत्मा से जिस अदृष्ट और शरीर का समवाय सम्बन्ध है वह उस का स्वकीय यह कथन भी ठीक नही। समवाय भी नित्य, सर्वगत, तथा एक है अतः किसी एक आत्मा का किसी एक शरीर से समवाय द्वारा सम्बन्ध मानना उचित नही - समवाय का सम्बन्ध सभी आत्माओं से है। अतः आत्मा यदि सर्वगत है तो किसी एक ही शरीर में उस की प्रतीति होती है, अन्यत्र नही होती इस तथ्य का कोई स्पष्टीकरण नहीं होता। अतः आत्मा को सर्वगत
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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