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________________ १५० विश्वतत्त्वप्रकाशः [४५ रज्जुसदेरनिर्वचनीयत्वाभावात् साध्यविकलो दृष्टान्तश्च। तस्यानिर्वचनीयत्वाभावः प्रागेव समर्थित इति न पुनरत्रोच्यते। एतेन प्रपञ्चो मिथ्या अचेतनत्वात् अस्वसंवेद्यत्वात् स्वप्रतिबद्धव्यवहारे संशयव्यवच्छेदाय परापेक्षत्वात् रज्जुसादिवदिति एतदपि निरस्तं वेदितव्यम् । एतेषां हेतृनामपि जडत्वाभिधानत्वेन तद्दोषेणैव दुष्टत्वात्।। ननु प्रपञ्चो मिथ्या दृश्यत्वात् स्वप्नप्रपञ्चवदिति भविष्यतीति चेन्न । अस्यापि हेतोर्विचारासहत्वात् । तथा हि। दृश्यत्वं नाम नित्यानुभववेद्यत्वं तच्च परमात्मन्यपि विद्यत इति तेन हेतोर्व्यभिचारः स्यात् । ननु नित्यानुभववेद्यत्वं न दृश्यत्वमपि तु प्रत्यक्षादिप्रत्ययवेद्यत्वं दृश्यत्व. मुच्यत इति चेन्न । तथापि तेनैव परमब्रह्मणा हेतोर्व्यभिचारात् । तत् कथमिति चेत् 'सर्वप्रत्ययवेद्ये वा ब्रह्मरूपे व्यवस्थिते। प्रपश्चस्य प्रविलयः शब्देन प्रतिपाद्यते ॥' (ब्रह्मसिद्धि ४-३) के समान प्रपंच भी अनिर्वचनीय नही हो सकता यह हमने पहले ही स्पष्ट किया है अतः दूसरा पक्ष भी सम्भव नही है। इसी प्रकार प्रपंच को अचेतन, अस्वसंवेद्य, अपने विषय में संशय को दूर करने के लिये दूसरे की अपेक्षा रखनेवाला - आदि कहना भी अनुचित है - जैसे प्रपंच जड नही वैसे ही अचेतन आदि भी नही हो सकता। स्वप्न के समान प्रपंच भी दृश्य है अतः वह मिथ्या है यह वेदा. न्तियों का अनुमान भी दूषित है । प्रपंच को दृश्य कहने का अर्थ यह है कि वह नित्य अनुभव से ज्ञात होता है – किन्तु परब्रह्म भी नित्य अनुभव से ज्ञात होता है और वह मिथ्या नही है। दृश्य कहने का तात्पर्य प्रत्यक्षादि से ज्ञात होना हो तो भी यही आपत्ति आती है - परब्रह्म भी प्रत्यक्षादि सभी प्रत्ययों का विषय है किन्तु वह मिथ्या नही है । ब्रह्मसिद्धि में कहा भी है - 'ब्रह्मरूप सब प्रत्ययों से ज्ञात होता है अतः प्रपंच का विलय शब्द द्वारा प्रतिपादित करते हैं।' दसरे, स्वप्न १ रज्जुसर्पादि अयं दृष्टान्तः अनिर्वचनीयो न भवेत् । २ जडत्वात् इत्यस्य हेतोः यो दत्तो दोषः तेन दोषेण दुष्टत्वात् । ३ परमात्मनि नित्यानुभववेद्यत्वेपि मिथ्यात्वासंभवः। ४ परमब्रह्मणि प्रत्यक्षादि प्रत्ययवेद्यत्वेपि मिथ्यात्वाभावः।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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