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________________ -४२] भ्रान्तिविचारः १३५ स्यादिति चेन्न। तस्य जलादेराशुतरविनाशित्वेन प्राप्यत्वासंभवात् । तर्हि तस्यासत्यत्वव्यवहारः कथमिति चेत् आशुतरविनाशित्वादेव तत्र' असत्यव्यवहारो लोकस्येति ब्रूमः इति सांख्यः प्रत्यवातिष्ठिपत् । सोऽप्ययुक्तिक्षः तदुक्तेर्विचारासहत्वात् । तथा हि यदुक्तमन्ये तु स्वेषां तदुपलब्धिसामग्यभावान्न पश्यन्तीति तदयुक्तम्। नदनदीसरस्तटाकादौ प्रसिद्धजलायुपलब्ध्यर्थ प्रतिपुरुषं चक्षुरादिव्यतिरेकेण सामग्यन्तरानुपलम्भात् । यदप्यन्यदचर्चत्-आशुतरविनाशित्वादेव तत्र असत्यव्यवहारो लोकस्येति तदसत् । आशुतरविनाशिनि विद्युज्जलधरादी लोकस्यासत्यव्यवहारा. भावात्। जातितैमिरिकस्य यावज्जीवं द्विचन्द्रादिप्रतिपत्ती सत्यां द्विचन्द्रादेराशतरविनाशित्वाभावेऽपिलोकस्य मिथ्याव्यवहारसदभावाञ्च। किं च । प्रसिद्धजलादीनां तत्र प्रतीयमानानामाशुतरविनाशेऽपि कर्दमइस प्रश्न के उत्तर में वे कहते हैं कि जिन्हें उस ज्ञान के सहायक कारण प्राप्त नही होते वे उसे नही देख पाते। जिसे मृगजल दिखाई देता है उसे भी पास जाने पर वह प्राप्त क्यों नही होता - इस प्रश्न का उत्तर वे यह देते हैं कि पास पहुंचने तक वह जल नष्ट हो जाता है। बहुत शीघ्र नष्ट होने के कारण ही लोग इसको मिथ्या कहते हैं। किन्तु सांख्यों का यह मत उचित नहीं । जिन्हें मृगजल के ज्ञान के सहायक कारण प्राप्त नही होते वे उसे नही देख पाते – यह उनका कथन व्यर्थ है क्यों कि सब लोगों को तालाब, नदी आदि का जल सिर्फ आंखों से ही दिखाई देता है -- उस में किन्ही सहायक कारणों की जरूरत नही होती। यह जल शीघ्र नष्ट होता है अतः इसे मिथ्या कहते हैं यह कथन भी ठीक नही - बिजली, मेघ आदि भी शीघ्र नष्ट होते हैं किन्तु उन्हें मिथ्या नही कहा जाता। दूसरे, किसी को · आकाश में दो चन्द्र हैं' यह भ्रम दीर्घकाल तक बना रहता है - ये दो चन्द्र शीघ्र नष्ट नही होते - फिर भी इसे भिथ्या ही कहा जाता है। फिर यह सरल बात है कि यदि मृगजल नष्ट भी हो जाता है तो उस के प्रदेश में गीलापन, कीचड आदि कुछ चिन्ह विद्यमान रहते। ऐसे कोई चिन्ह १ मरीचिकाचक्रादौ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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