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________________ -४१] भ्रान्तिविचारः १२७ हेतोरकिंचित्करत्वं स्यात् । अथ रजतस्मरणं धर्मीक्रियते चेत् तर्हि तत्र रजतविषयस्मरणाभावादाश्रयासिद्धो हेत्वाभासः स्यात् । अथ वीतं रजतज्ञानं स्मरणमेव रजतसंस्कारान्यत्वे सत्यगृहीतरजतस्या'नुत्पद्यमानत्वात् प्रसिद्धस्मरणवदिति तत्र रजतविषयस्मरणसद्भावात् नाश्रयासिद्धो हेतुरिति चेन्न। रजतविषयसमीहितसाधनानुमानेन हेतोयभिचारात् । कुतः तस्य संस्कारान्यत्वे सत्यगृहीतरजतस्यानुत्पद्यमानत्वसद्भावेऽपि स्मरणत्वाभावात् । अथ वीतं रजतज्ञानं स्मरणमेव सादृश्यसंदर्शनादुत्पद्यमानत्वात् प्रसिद्धस्मरणवदिति चेन्न। हेतोरुपमाप्रमाया व्यभिचारात् । ननु वीतं रजतज्ञानं स्मरणमेव संस्कारोबोधमन्तरेणानुत्पद्यमानत्वात् प्रसिद्धस्मरणवदिति चेन्न। हेतोरसिद्धत्वात् । कथमिति चेत् अक्षिविस्फालनानन्तरमिदमंशग्रहणसंस्कारोबोधमन्तरेणैव रजतांशग्रहणस्याप्युत्पत्तिदर्शनात् । प्रत्यभिज्ञानेन व्यभिचारश्च। कुतस्तस्य बाधित होगा। यदि प्रमाण सिद्ध नही मानते हैं तो उस के सत्यत्व की चर्चा व्यर्थ होगी। ' यह कुछ है' इतने ज्ञान को सत्य कहना हो तो इस में कुछ विवाद नही हो सकता। किन्तु यह ज्ञान चांदी का स्मरण है यह कथन युक्त नही। जिसने पहले चांदी नही देखी हो उसे ऐसा ज्ञान नही होता अतः यह स्मरण ही है - यह मीमांसकों की युक्ति है। किन्तु चांदी के विषय में कोई अनुमान भी चांदी के विना देखे सम्भव नही है। अतः ऐसा ज्ञान अनुमान भी हो सकता है - स्मरण ही हो यह आवश्यक नही। इसी तरह समानता के देखने से यह ज्ञान उत्पन्न होता है अतः स्मरण है यह कथन भी दूषित है - उपमान भी समानता के देखनेसे उत्पन्न होता है किन्तु वह स्मरण नही होता। चांदी के संस्कार के उद्बोधन के विना यह ज्ञान नही होता अतः यह चांदी का स्मरण है - यह कथन भी ठीक नही । एक तो प्रस्तुत प्रसंग में चांदी के संस्कार का उद्बोधन होता है यह कथन ही ठीक नही - जब पुरुष सींप को देखता है तभी — यह चांदी है ' ऐसा ज्ञान उसे होता है - १ पुंसः। २ उपमाप्रमायाः सादृश्यसंदर्शनादुत्पद्यमानत्वेऽपि स्मरणत्वाभावः ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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