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________________ ११८ विश्वतत्त्वप्रकाशः त्वात् संप्रतिपत्रज्ञानवदिति । यदप्यत्राभ्यधायि चीतो विषयः असनेव भ्रान्तिविषयत्वात् स्वप्ननभोभक्षणवदिति शुक्तौ रजतज्ञानस्य निरालम्बनत्वसिद्धेर्न साध्यविकलो दृष्टान्त इति तदसत् । धर्मिणः प्रमाणगोचरत्वे हेतोः स्वरूपासिद्धत्वात् । कथं प्रमाणगोचरे वस्तुनि भ्रान्तिविषयत्वाभावात् धर्मिणः प्रमाणगोचरत्वाभावे हेतोराश्रयासिद्धत्वाच्च । एतेन यदप्यन्यदनुमानद्वयमभ्यधायि-वीतो विषयः असन्नेव अर्थक्रियायाम् असमर्थत्वात् तत्राविद्यमानत्वात् खपुष्पवदिति-तदपि निरस्तम् । धर्मिणः प्रमाणगोचरत्वे तदगोचरत्वे चोक्तदोषस्य एतदनुमानद्वयेऽपि समानत्वात् । किं च शुक्तिरजतद्रष्टुः पुरुषस्य संतोषेष्टसाधनानुमानतद्देशोपसर्पणाद्यर्थक्रियाकारित्वसद्भावेन अर्थक्रियायाम् असमर्थत्वादित्यसिद्धो हेत्वाभासः। तत्राविद्यमानत्वयादित्ययमपि हेतुः साध्यसमत्वेना सिद्ध एव स्यात् । यदप्यन्यदनुमानं प्रत्यपादि - तथा नेदं रजतमिति ज्ञान प्रागप्यसत्त्वावेदका ज्ञान निराधार नही होता अतः इस अनुमान का उदाहरण भी दोषयुक्त है। सामने पडी हुई चमकीली सफेद तेजस्वी रंग की वस्तु (सीप ) आधारभूत होने पर ही यह चांदी का ज्ञान होता है अतः यह निराधार नही है। स्वप्न में आकाश के भक्षण के समान ये विषय भ्रममूलक हैं यह कथन भी योग्य नही । यदि सभी विषय भ्रममलक हों तो अनुमान में धर्मी का वर्णन भी भ्रममलक होगा - फिर उसे प्रमाणसिद्ध नही कह सकेंगे। तदनुसार सब अनुमान भी भ्रनजनक ही होंगे। ये विषय अर्थक्रिया में असमर्थ हैं अतः असत् हैं यह कहना भी ठीक नही क्यों कि सींप में चांदी के ज्ञान से भी चांदी देख कर प्रसन्न होना, उस के समीप जाना, उसे उठा कर देखना आदि अर्थक्रिया होती है। ये विषय अविद्यमान हैं अतः असत् हैं यह कथन भी उपयुक्त नही। अविद्यमान होना और असत् होना ये दोनों एकही हैं अतः एक को दूसरे का कारण: बतलाना १ शुक्तिलक्षणवस्तु तदेव विषयो यस्य रजतज्ञानस्य । २ यथा संप्रतिपन्नज्ञानस्य पुरोवर्तिपदार्थः विषयः स तु आलम्बनः । ३ वीतो विषयः इति धर्मा स तु प्रमाणगोचरः अप्रमाणगोचरो वा । ४ शुक्तौ रजतज्ञानं वर्तते तत् किं अर्थक्रियासमर्थम् अपि तु न तस्मात् अर्थक्रिया-असमर्थत्वात् । ५असन् इति साध्यम अविद्यमानत्वमपि असत् इति साध्यसमत्वम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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