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________________ -३७] प्रामाण्यविचारः १०५ [.३७. प्रामाण्यज्ञप्तिविचारः] प्तिपक्षे प्रामाण्यं परत एव ज्ञायत इति नैयायिकादयः। तेऽपि न युक्तिवादिनः । परेण प्रामाण्यप्रतिपत्तौ तस्यापि परेण प्रामाण्यं प्रतिपक्तव्यं तस्यापि परेण प्रामाण्यं प्रतिपत्तव्यभित्यनवस्थाप्रसंगात् । ननु त्रिचतुरादिज्ञानानन्तरमपेक्षापरिक्षयान्नानवस्थेति चेन। चरम ज्ञानप्रामाण्यप्रतिपत्त्यभावे द्विचरम ज्ञानप्रामाण्यप्रतिपत्त्यभावः तदभावे त्रिचरमज्ञान प्रामाण्यप्रतिपत्यभावः इत्येवं क्रमेण प्रथमज्ञानस्यापि प्रामाण्यप्रतिपत्यभावप्रसंगात् । तस्मात् सर्वत्र परत एवेति न वाच्यम् अपि तु क्वचित् स्वतोऽपि । तथा च प्रयोगः। स्वकीयकरतलज्ञानप्रामाण्यं विज्ञानज्ञापन ज्ञायते विज्ञानज्ञप्तिकाले शातत्वात् व्यतिरेके जलमरीचिकासाधारणप्रदेशे जलज्ञानप्रामाण्यवत् । ननु अस्तु विज्ञानं येन ज्ञायते तेनैव तत्प्रामाण्यपि ज्ञायत इति शप्तिपक्षेऽपि प्रामाण्यं स्वत एवेति मीमांसकाः प्रत्याचक्षते। तेऽपि नं ३७. प्रामाण्य के ज्ञानका विचार–प्रामाण्य का ज्ञान स्वतः नही होता - दूसरों द्वारा ही होता है ऐसा नैयायिकों का मत है। किन्तु यह अनुचित है। यदि एक के ज्ञान का प्रामाण्य दूसरा जाने तो इस दूसरे के प्रामाण्यज्ञान का प्रामाण्य जानने के लिये तीसरे की जरूरत रहेगी और इस तीसरे के ज्ञान के प्रामाण्य को चौथा जानेगा - इस प्रकार अनवस्था होती है। जब तक दूसरा व्यक्ति अपने ज्ञान के प्रामाण्य के बारे में नही जानता तबतक वह पहले व्यक्ति के ज्ञान के प्रामाण्य को कैसे समझ सकता है ? अतः कुछ प्रसंगों में ज्ञान के प्रामाण्य का ज्ञान स्वतः होता है यह स्पष्ट हुआ। अपने हाथ को कोई देखता है तो उस हाथका ज्ञान और उस ज्ञान के प्रामाण्य का ज्ञान एक ही साथ होता है - यही प्रामाण्य के स्वतः ज्ञात होने का उदाहरण है । नैयायिकों के विरोध में मीमांसक यह मानते हैं कि प्रामाण्य का ज्ञान स्वतः ही होता है किन्तु यह आग्रह हमें उचित प्रतीत नही होता। १ अज्ञातपरिच्छित्तिः ज्ञप्तिः । २ अन्तिम । ३ अन्तिमसमीप । ४ यत्तु विज्ञानज्ञापकेन न ज्ञायते तत्तु विज्ञानज्ञप्तिकाले ज्ञातं न भवति यथा जलमरीचिकासाधारणप्रदेशे जलज्ञानप्रामाण्यम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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