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________________ -२२] ईश्वरनिरासः अथ असर्वगतं तच्छरीरमङ्गीक्रियते तन्नित्यमनित्यं वा । न तावन्नित्यं शरीरत्वात् , अवयवित्वात् , मध्यमपरिमाणवत्त्वात् , संप्रतिपन्नशरीरवत् । अथ अनित्यं तत् केन क्रियते । तेनैव महेश्वरेणेति चेत् अशरीरेण सशरीरेण वा । न तावदाद्यः पक्षः शरीरावष्टम्भरहितस्य कार्यकर्तृत्वायोगात् । अथ अस्मदादेः स्वशरीरक्रियायां शरीरान्तरमन्तरेणापि कर्तृत्वं दृश्यत इति चेन्न । तत्रापि शरीरावष्टब्धस्यैव कर्तृत्वात् , वामपादचारो दक्षिणपादावष्टम्भन दक्षिणपादप्रचारो वामपादावष्टम्मेन उभयप्रचारः कट्याद्यवष्टम्मेन क्रियते इति शरीरावष्टब्धस्यैव कर्तृत्वात्। तथा वीतः पुमान् सशरीर एव कर्तृत्वात् संप्रतिपन्नकर्तृवत् । अशरीरस्य च कर्तृत्वं नोपपनीपद्यत इति प्रागेव विस्तरेण प्रत्यपीपदामे त्यत्रोपरम्यते। अथ सशरीरेण क्रियते चेत् तर्हि तदपि शरीरं पूर्वशरीरसहितेन तदपि ततः पूर्वशरीरसहितेनेतीश्वरस्यानाद्यनन्तशरीरसंततिः स्यात्। ईश्वर का शरीर अव्यापक है यह मानकर भी उसके कर्तृत्व कर समर्थन नहीं हो सकता । वह शरीर नित्य नही हो सकता क्यों कि शरीर अनित्य होते हैं - अवयवयुक्त तथा मध्यमपरिमाण के होते हैं। यदि ईश्वर का शरीर अनित्य है तो प्रश्न होता है कि उस शरीर का निर्माण किसने किया ? उसी ईश्वर ने अपना शरीर निर्माण किया यह मानना ठीक नही। क्यों कि शरीर निर्माण के पहले ईश्वर शरीरहित था तथा शरीररहित अवस्था में कार्य करना सम्भव नहीं। हम अपने शरीर की क्रियाएं अपने आप-दूसरे शरीर की सहायता के बिना करते हैं उसी तरह ईश्वर अपने शरीर का निर्माण करता होगा यह समाधान भी उचित नहीं। हमारे शरीर की क्रियाएं भी शरीर से स्वतन्त्र नही होती - दाहिना पैर उठाते हैं तो बाएं पैरका उसे आधार होता है तथा बायां पैर उठाते हैं तो दाहिने पैर का आधार होता है। शरीररहित अवस्था में कोई कार्य नही होता। . ईश्वर ने अपने शरीर का निर्माण सशरीर स्थिति में किया यह कहें तो अनवस्था होगी-इस शरीर के निर्माण के पहले जो शरीर था उस के निर्माण के लिये पूर्ववर्ती शरीर की जरूरत होगी-उस पूर्ववर्ती शरीर १ पुरुषस्य । २ प्रतिपादयामः स्म ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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