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________________ ५२ . विश्वतत्त्वप्रकाशः [२२ पुरुषवदिति। तस्मादसौ' कर्ता न भवति शानेच्छाप्रयत्नरहितत्वात् मुक्तात्मवत् । शानेच्छाप्रयत्नरहितोऽसौ शरीररहितत्वात् तद्वदिति तस्य कर्तृत्वाभावः। ___अथ सशरीर एव ईश्वरः सकलकार्य करोतीति चेत् तत् शरीर सर्वगतमसर्वगतं वा सकलदेशेषु कार्य कुर्यात् । न तावत् सर्वगतं तेनैव सकललोकव्याप्तेरन्यपदार्थप्रचारस्यावकाशासंभवात्। अथ आलोकादिपत् तस्याप्रतिबन्धकत्वात् तत्रैव सकलपदार्थप्रचारो भविष्यतीति चेन्न । शरीराणां पञ्चभूतात्मकत्वेन आप्यतैजसवायवीयानामपि पार्थिवादि. परमाण्ववष्टम्मेन ह्यनेकाकारत्वे सत्येव शरीरत्वात् । तादृशस्य शरीरस्य मूर्तद्रव्यप्रचारप्रतिबन्धित्वात् । तन्मते. अन्यादृशस्य शरीरस्याभावाच । एवं च बुद्ध्याद्यङ्कुरादिकार्येषु तादृक्शरीरव्यापाराभावस्य प्रत्यक्षेणैव निश्चितत्वात् कालात्ययापदिष्टत्वं हेतोः समर्थितं भवति । से रहित मानना ही उचित है । इसी लिए उसे कर्ता भी नही माना जा सकता। ईश्वर शरीरसहित है और सब कार्य करता है यह कथन भी ठीक नही । ईश्वर का शरीर सर्वव्यापी होगा या अव्यापक होगा । यदि उसको सर्वव्यापी मानें तो उसी के द्वारा समस्त प्रदेश व्याप्त होने पर अन्य पदार्थों के लिए स्थान नही रहेगा । जैसे प्रकाश सर्वत्र व्याप्त होने पर भी अन्य पदार्थों को प्रतिबन्ध नही करता उसी तरह ईश्वर का शरीर भी अप्रतिबन्धक है-यह समाधान भी उचित नहीं । न्यायदर्शन में शरीरों को पंचभतात्मक माना है । अतः प्रत्येक शरीर में अय्, तेज और वायु के साथ पृथ्वी के परमाणु भी होते हैं। इस लिये उन के मन में कोई शरीर अप्रतिबन्धक नही हो सकता। तथा बुद्धि, अंकुर, वस्त्र आदि के निर्माण में ईश्वर का ऐसा कोई पंचभूतात्मक शरीर कारण नही है यह प्रत्यक्ष से ही निश्चित है। अतः ईश्वर का जगत्कर्ता होना सिद्ध नही होता । १ ईशः । २ ईशः । ३ सर्वगतशरीरेण । ४ यथा आलोकः केषामपि पदार्थाना प्रतिबन्धको नास्ति तथा ईशशरीरस्य । ५ नैयायिकमते । ६ सर्वगतशरीर ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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