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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [१९प्रमाणत्वात् सुखादिवदिति च । ननु धर्मित्वेनाङ्गीकृतः सर्वज्ञः प्रमाणप्रतिपन्नः अप्रमाणप्रतिपन्नो वा । प्रथमपक्षे हेतुप्रयोगस्य वैयर्थ्य स्यात् । सर्वशास्तित्वस्य प्रागेव प्रमाणप्रतिपन्नत्वात् । द्वितीयपक्षे धर्मिणोऽप्रमाणप्रतिपन्नत्वाद् आश्रयासिद्धो हेत्वाभासः स्यादित्यसौ पर्यनुयुंक्ते । अत्रोच्यते। धर्मी प्रमाणप्रतिपन्नो न भवति अप्रमाणप्रतिपन्नो वा न भवति अपि तु विकल्पप्रतिपन्न एवेति मः। विकल्पो नाम प्रमाणाप्रमाणसाधारणज्ञानमुच्यते । जलमरीचिकासाधारणप्रदेशे जलज्ञानवत् । तस्माद् धामणो विकल्पसिद्धत्वाद् हेतो श्रयासिद्धत्वं नापि हेतुप्रयोगस्य वैयर्थ्य विप्रतिपनं प्रति तदस्तित्वप्रसाधनात् । अथवा अनश्नन्नन्यो अभिचाकशीतीति तस्य भासा सर्वमिदं विभातीत्याद्यागमात् प्रतिपन्नः सर्वज्ञो धर्मी क्रियत इति नाश्रयासिद्धत्वम् । तत्प्रामाण्येऽपि विप्रतिपानं प्रति सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणत्वात् तत्प्रमेयास्तित्वं प्रसाध्यत उस में बाधक प्रमाण नहीं हो सकते यह उस का हेतु है । इस पर कोई आक्षेप करते हैं कि यहां धर्मी (सर्वज्ञ) प्रमाण से ज्ञात है या नही? यदि ज्ञात है तो उस के विषय में हेतु आदि निरर्थक होंगे (क्यों कि उस का अस्तित्व ज्ञात ही है)। यदि प्रमाण से धर्मी (सर्वज्ञ ) ज्ञात नही है तो उस के बारे में अनुमान आदि कैसे हो सकते हैं ? वह प्रमाण से अनिश्चित होने से उस के विषय में हेतु आश्रयासिद्ध होगा । इस आक्षेप का उत्तर इस प्रकार है - यहां धर्मी ( सर्वज्ञ ) प्रमाण से ज्ञात है अथवा अज्ञात है ये दोनों बातें ठीक नही - वह विकल्प से ज्ञात है ऐसा कहना चाहिये। जैसे मृगजल के प्रदेश में जल का ज्ञान होने पर भी यह ज्ञान प्रमाण है अथवा अप्रमाण है यह निश्चय नहीं होता-विकल्प होता है वैसे ही सर्वज्ञ के विषय में विकल्प होने पर अनुमान आदि से उस का अस्तित्व सिद्ध किया जाता है। अतः यह अनुमान प्रयोग निरर्थक नही है। अथवा उक्त आक्षेप का दूसरा उत्तर यह है – आगम से (पूर्वोक्त उपनिषद्वाक्यों आदि से ) सर्वज्ञ का ज्ञान होता है तदनन्तर अनुमान का प्रयोग करते हैं अतः यहां धर्मी ( सर्व ) असिद्ध नही है। जो आगम को प्रमाण १ वदति। २ चकास दीप्तौ। ३ तस्य सर्वज्ञस्य प्रमेयरूपं यदस्तित्वं तत् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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