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________________ चार्वाक-दर्शन-विचारः [ ५. जीवनित्यता-समर्थनम् ।] तस्मादनाद्यनन्तो जीवः अद्वयणुकत्वे सति अतीन्द्रियद्रव्यत्वात् निरवयवद्रव्यत्वाच्च परमाणुवत् । अथ जीवस्य निरवयवत्वमसिद्धमिति चेन्न । जीवो निरवयवः अद्वयणुकत्वे बाह्येन्द्रियग्रहणायोग्यत्वात् परमाणुवदिति निरवयत्वसिद्धः । तर्हि द्रव्यत्वमसिद्धमिति चेन्न । जीवो द्रव्यं गुणाधारत्वात् परमाणुवदिति द्रव्यत्वसिद्धेः । अथ गुणाधारत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । तत्साधकप्रमाणसद्भावात् । तथाहि शब्दादिक्षानं क्वचिदाश्रितं गुणत्वात् रूपादिवत् । अथ ज्ञानस्य गुणत्वमसिद्धमिति चेन्न । ज्ञानं गुणः क्रियान्यत्वे सति निर्गुणत्वात् अवयविक्रियान्यत्वे सति उपादानाश्रितत्वात् रूपादिवदिति गुणत्वसिद्धेः। अथ तथापि शब्दादिज्ञानस्य शरीरा३श्रितत्वाङ्गीकारेण सिद्धसाध्यत्वाद् गुणत्वादिति हेतोरकिंचित्करत्वमिति चेन्न । तस्य तदाधितत्वे बाधकसद्भावात् । शरीरं न ज्ञानादिगुणाश्रयं ५. अब जीव को अनादि-अनन्त सिद्ध करनेवाले अनुमान प्रस्तुत करते हैं। जीव परमाणु के समान अतीन्द्रिय तथा निरवयव द्रव्य है ( इन्द्रियों से जीव का ग्रहण नही होता और जीव के अवयव नही होते- वह एक अखण्ड द्रव्य है) अतः वह अनादि-अनन्त है। जीव निरवयव है क्यों कि बाह्य इन्द्रियों से उस का ग्रहण नही हो सकता। जीव द्रव्य है क्यों कि वह ( ज्ञान आदि ) गुणों का आधार है। जैसे रूप आदि गुणों का आधार परमाणु है उसी प्रकार ज्ञान आदि गुणों का आधार जीव है। ज्ञान क्रिया से भिन्न है और स्वयं निर्गुण है अतः ज्ञान एक गुण है और वह जिस द्रव्यके आधार से रहता है वही जीव द्रव्य है। जैसे रूप आदि गुण क्रियासे भिन्न और स्वयं निर्गुण हैं तथा परमाणु के आधारसे रहते हैं उसी प्रकार ज्ञान और जीव का सबन्ध समझना चाहिये। शब्द आदि का ज्ञान शरीर पर ही आश्रित है अत: उस के आधार के रूप में जीव की कल्पना व्यर्थ है यह आक्षेप उचित नही । शरीर ज्ञान का आधार नही हो सकता क्यों कि वह वस्त्र आदि के समान मूर्त, अचेतन तथा भूतों (पृथिवी आदि) १ क्रियारहितत्वे सति। २ क्रियायां निर्गुणत्वमस्ति तर्हि किं क्रिया गुणः अत उक्तं क्रियान्यत्वे सति। ३ शरीरमेव जीवः । ४ शरीराश्रितत्वे । ५ ज्ञानादिगुणानाम् आश्रयभूतम्।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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