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________________ १२ विश्वतत्त्वप्रकाशः [४ तदप्यचारु, हेतोः परमाणुभिर्व्यभिचारात् । अथ अनणुत्वे सति द्रव्यत्वाबान्तरसामान्यवत्त्वादित्युच्यते तथापि हेतोः पर्वतैरनेकान्तः। कथं पर्वतेषु अनणुत्वे सति द्रव्यत्वावान्तरसामान्यवत्त्वस्य सद्भावेऽपि कादाचित्कत्वाभावात्। यदप्यन्यदनुमानं प्रत्यपीपदत्-जीवः कादाचित्कः क्रियावत्त्वात् घटादिवदिति तदप्यनुचितम्। परमाणुषु क्रियावत्वसद्भावेऽपि कादाचित्कत्वाभावात् । अथरे अनणुत्वे सति क्रियावत्स्वादिति हेतुः सोप्यसाधुः। ज्योतिर्गणेषु अनणुत्वे सति क्रियावत्वसद्भावेऽपि कादाचित्कत्वाभावेन तैरनेकान्तात् । अथ तेषाम् उदयास्तसद्भावात् कादाचित्कत्वमस्तीति चेन्न । ध्रुवतारादीनामुदयास्तरहितानां बहूनामप्युपलम्भात् । अथ तेषामप्यहन्यदर्शनाद् रात्रौ दर्शनात् कादाचित्कत्वमिति चेत् तर्हि भभूधरादीनामपि तथा स्यादित्यतिप्रसज्यते। एतेन यदप्यन्यदवादीत् जीवः कादाचित्कः विशिष्टाकारधारित्वात् अवान्तरपरिमाणाधारत्वात् पटादिवदिति तन्निरस्तम् । पर्वतादिभि हेतोरनेकान्तसद्भावात् । भी दोषयुक्त है। परमाणु क्रियायुक्त होते हैं किन्तु अनित्य नही होते। इसी प्रकार ग्रह-नक्षत्र भी क्रियायुक्त हैं किन्तु नित्य हैं । ग्रह नक्षत्रों का उदय और अस्त होता है अत: वे अनित्य हैं यह कहना ठीक नही क्यों कि ध्रुवतारा जैसे कई नक्षत्रों का कभी अस्त नही होता। ध्रुवभी दिनमें दिखाई नही देता अतः वह भी अनित्य है यह कहना भी अयोग्य है क्यों कि ऐसा मानने पर पर्वत आदि को भी अनित्य कहना होगा- पर्वत भी रात के अन्धेरेमें दिखाई नही देते। अतः क्रियायुक्त होने से जीव को अनित्य कहना योग्य नही। इसी प्रकार जीव विशिष्ट आकार का है, अवान्तर परिमाण का आधार है अतः अनित्य है यह अनुमान भी सदोष समझना चाहिये क्यों कि पर्वत इत्यादि पदार्थ भी विशिष्ट आकार और अवान्तर परिमाण के धारक होते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि चार्वाकों द्वारा जीव को अनित्य सिद्ध करनेके लिये जो अनुमान दिये गये वे गलत हैं। १ परमाणुषु द्रव्यत्वावान्तरसामान्यवत्त्वेऽपि कादाचित्कन्वाभावात्। २ भो चार्वाक अथ एवम् । ३ भूधरादीनाम् अहनि दर्शनं रात्रौ अदर्शनं वर्तते परंतु न ते कादाचित्काः। ४ पर्वतादिषु विशिष्टाकारधारित्वसद्भावेऽपि कादाचित्कत्वाभावात् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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