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________________ -३] चार्वाक दर्शन-विचारः वीतः पुरुषः सर्वशं न पश्यति पुरुषत्वात् अस्मदादिवदिति । सर्वशाभावात् तत्प्रणीतागमाभावः। अथ सर्वज्ञप्रणीतागमाभावेऽपि अपौरुषेयागमसद्भावात् स एव जीवस्यानाद्यनन्तत्वमावेदयतीति चेन्न । पदसंदर्भरूपत्वेन आगमस्यापौरुषेयत्वायोगातू । तथा हि। वेदवाक्यानि पौरुषेयाणि वाक्यत्वात् कादम्बरीवाक्यवत् । एवमागमस्य प्रामाण्याभावात् कथं तेन जीवस्यानाद्यनन्तत्वादिकं वेविद्यसे त्वम् । तस्मात् तद्ग्राहकप्रमाणाभावात् सादिसनिधन एव जीवो अजाघटिष्ट । [३. चार्वाकसंमतं जीवस्वरूपम् । तथा च प्रयोगाः । जीवः कादाचित्कः द्रव्यत्वे सति प्रत्यक्षत्वात् । जीवः कादाचित्कः विशेषगुणाधिकरणत्वात्', द्रव्यत्वावान्तरसामान्यवत्त्वात्', क्रियावत्त्वाच्च, पटवदिति च । एवं च देहात्मिका देहकार्या देहस्य च गुणो मतिः। मतत्रयमिहाश्रित्य जीवाभावोऽभिधीयते ॥ __ (प्रमाणवार्तिकभाष्य पृ. ५३) सर्वज्ञप्रणीत आगमका भी अस्तित्व नही जिससे जीवका अनादि-अनन्त होना ज्ञात हो सके। सर्वज्ञप्रणीत आगम न होने पर भी अपौरुषेय आगम (वेद)से जीवका अनादि-अनन्त होना सिद्ध होता है यह कथन भी योग्य नही क्यों कि आगम अपौरुषेय नही हो सकते । कादम्बरी आदि ग्रन्थों के समान सभी वाक्यरचना पुरुषकृत होती है अत: वेदवाक्य भी पुरुषकृत हैं- अपौरुषेय नही। अतः जीव का अनादि-अनन्त होना किसी प्रमाणसे सिद्ध नही होता। ३. अब जीव के स्वरूप के विषय में चार्वाक दार्शनिकों के विचार प्रस्तुत करते हैं- जीव कादाचित्क (कुछ समय तकही विद्यमान) है क्यों कि वह प्रत्यक्ष का विषय द्रव्य है, विशेष गुणों का आधार है, द्रव्यत्व से भिन्न सामान्य (जीवत्व )से युक्त है, तथा क्रियायुक्त है। चार्वाकों ने जीव का अभाव तीन प्रकारसे माना है- बद्धि देहात्मक है, देह का कार्य है अथवा देह का गुण है (स्वतन्त्र जीव नामक कोई पदार्थ १ मीमांसकः। २ भृशं संघटते स्म। ३ अनुमान। ४ बुद्धिसुखदुःखादिविशेषगुणाः। ५ द्रव्यत्वं च तदवान्तरसामान्यं ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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