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________________ १०८ विश्वतत्त्वप्रकाशः में सन्देह होने लगा तथा बाबू सूरजभानु जैसे लेखकों ने आदिपुराण समीक्षा, पद्मपुराणसमीक्षा जैसी पुस्तिकाओं की रचना की । इन पुस्तिका ओं के उत्तर में पं. लालाराम आदि विद्वानों ने पुराणों के वर्णनों का तर्कबल से समर्थन करने का प्रयास किया । ___पुरातन युग में जैन लेखकों ने कई जैनेतर तकग्रन्यों पर टीकाएं आदि लिखीं थीं किन्तु किसी जैन ग्रन्थ पर जैनेतर विद्वान द्वारा टीका आदि लिखे जाने का उदाहरण नही मिलता। आधुनिक युग का यह एक सुपरिणाम था कि जैनेतर विद्वानों ने भी जैन तर्कग्रन्थों के अध्ययनसम्पादन-प्रकाशन में भाग लेना प्रारम्भ किया। डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण, डॉ. आनन्दशंकर ध्रुव, डॉ. शरच्चन्द्र घोशाल, डॉ. परशुराम वैद्य, एफ. डब्ब्यू. टोमस आदि ने जैन तर्कग्रन्थों का जो व्यापक अध्ययन प्रस्तुत किया उस से भारतीय साहित्य में जैनों के योगदान का महत्त्व सुस्पष्ट हुआ। डॉ. जैकोबी आदि यूरोपीय विद्वानों ने भी सूत्रकृतांगादि ग्रन्थों के संपादन अथवा अनुवाद के कार्य में भाग लिया तथा जैन विषयों की चर्चा को अन्तरराष्ट्रीय रूप दिया । ... जैन पण्डितों ने प्रारंभ में तर्कग्रंथों का सम्पादन केवल अनुवाद के रूप में अथवा केवल मूलग्रन्थों के मुद्रण के रूप में किया । पं. निटवे, पं.गजाधरलाल, आदि का कार्य इसी रूप का था। कुछ विद्वानों ने पुरानी पद्धति से संस्कृत में तर्कग्रन्थों पर टीकाएं लिखी अथवा छोटे संस्कृत प्रकरण लिखे । ऐसे लेखकों में मुनि न्याय विजय, गम्भीर विजय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। किन्तु शीघ्र ही ऐतिहासिक-तुलनात्मक अध्ययन से विभूषित संस्करण भी तैयार होने लगे। इन की निर्मिति में पं. सुखलाल, मुनि चतुर विजय, पं. महेंद्रकुमार, पं. दलसुख मालवणिया, पं. दरबारीलाल आदि विद्वानों का कार्य उल्लेखनीय है। पुरातन ग्रन्थों के संस्करणों के साथ पं. महेंद्रकुमार के जैन दर्शन ' जैसे स्वतंत्र ग्रन्थों का भी प्रणयन हुआ जिन में आधुनिक विद्वानों ने जैन दर्शन पर जो आक्षेप लिए हैं उन के समाधान का प्रयास भी किया गया है।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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