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________________ प्रमाणपरिच्छेदः ३५ .. ( हेतुस्वरूपचर्चा । ) निश्चितान्यथानुपपत्त्येकलक्षणो हेतुः, न तु त्रिलक्षणकादिः । तथाहि विलक्षण एव हेतुरिति बौद्धाः । पक्षधर्मत्वाभावेऽसिद्धत्वव्यवच्छेदस्य, सपक्ष एव सत्त्वाभावे च विरुद्धत्वव्युदासस्य, विपक्षेऽसत्त्वनियमाभावे चानैकान्तिकत्वनिषेधस्यासम्भवेनानुमित्यप्रतिरोधानुपपत्तेरिति; तन्न; पक्षधर्मत्वाभावेऽपि उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयाद्, उपरि सविता भूमेरालोकवत्त्वाद्, अस्ति नभश्चन्द्रो जलचन्द्रादित्याद्यनुमानदर्शनात् । न चात्रापि 'कालाकाशादिकं भविष्यच्छकटोदयादिमत् कृत्तिकोदयादिमत्त्वात्' इत्येवं पक्षधर्मत्वोपपत्तिरिति वाच्यम्; अननुभूयमानर्धामविषयत्वेनेत्थं पक्षधर्मत्वोपपादने जगद्धर्म्यपेक्षया काककार्येन प्रासादधावल्यस्यापि साधनोपपत्तेः। ग्रहण नहीं हो रहा है, उसे भी अनुमान हो जायगा। मगर इवको अनुमान हो नहीं सकता। आशय यह है कि धूमका प्रत्यक्ष भी हो और अविनाभावका स्मरण भी हो, तभी अनुमान हो सकता है। [हेतु-स्वरूप] निश्चित रूपसे अन्यथानुपपत्ति ही जिसका एक मात्र लक्षण है, वही हेतु है । अर्थात् हेतुका एक ही लक्षण है और वह है अन्यथानुपपत्ति-साध्यके अभावमें न होना । हेतु तीन लक्षणवाला या पाँच लक्षणवाला नहीं होता। बौद्धमतके अनुसार हेतु त्रिलक्षणक होता है- (१) पक्षधर्मत्व (२) सपक्षसत्त्व और (३) विपक्षव्यावृत्ति, यह तीन हेतुके लक्षण हैं । इनमेंसे पक्षधर्मत्वके अभावमें हेतुकी असिद्धता नहीं टल सकती, सपक्षमें ही सत्त्व हुए विना विरुद्धता नहीं टल सकती और विपक्ष में असत्त्व हुए विना अनेकान्तिकता नहीं टल सकती । और इन तीनों दोषों के अभावके विना अनुमानकी उत्पत्ति नहीं हो सकती । बौद्धोंका यह कथन ठीक नहीं । पक्षधर्मता अर्थात् हेतुके पक्षमें रहने के अभावमें भी ये अनुमान देखे जाते हैं-(१) एक मुहूर्त्तके बाद शकट (रोहिणी) नक्षत्रका उदय होगा, क्योंकि इस समय कृत्तिकाका उदय है। (२) ऊपर सूर्य है, क्यों कि पृथ्वी प्रकाशमय है । (३) आकाशमें चन्द्रमा है, क्यों कि जलमें चन्द्रमा है । यहाँ तीनों हेतु पक्षमें नहीं रहते, अतः 'पक्षधर्मता नहीं है; फिर भी ये गमक हैं। ___ शङ्का- यहाँ दूसरी तरहसे अनुमान-वाक्यकी रचना करके पक्षधर्मत्व घटाया जा सकता है । जैसे- काल या आकाश, भविष्यमें होनेवाले शकट नक्षत्रके उदयवाला है, क्योंकि कृत्तिकाका उदयवाला है । इस प्रकारकी कल्पना करके पक्षधर्मत्व यहाँ भी घटाया जा सकता है । यहाँ कृत्तिकोदयवत्त्व हेतु पक्ष (काल या आकाशका) धर्म है। समाधान-इस प्रकारसे अनुभवमें न आनेवाले पक्षकी कल्पना करके अगर आप पक्ष
SR No.022456
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherTiloakratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1964
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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