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________________ ॥ श्रीः॥ ढढावंशोत्पत्तिः। प्राचीनकालमें भट्टारक श्रीधनेश्वरसूरीजीने श्रीशत्रुजयरास सम्बत ४७३ में कियाथा उन्होंने सोलंखी राजा गोविंदचन्दको सम्बत ४७७ में प्रतिबोध देकर जाति ओसवालयाने श्रीपतिगोत्र स्थापित किया गोविंदचन्दजीसे इग्यारवी पीढी झाजणसीजी हुए जिहोंने सम्बत ६०५ में संघ कढाकर श्रीशचंजययात्रा की । झाजणसीजीसे बीसवी पीढी बिमलसीजी हुए, इन्होंने एक लाख मण तेल संग्रह किया और तिलौरा कहलाए भट्टारक श्रीमहेन्द्रसूरीजी गच्छनायक थे उन्होंने सम्बत १००१ में नाडोल फरड फलोधी नागोर वाडमेर अजमेर जिनमंदिर करवाकर प्रतिष्ठा करवाई । इनके वंसमें सेठ भांडाजी हुए और धातुसंग्रह किया सेठ भांडाजीने जैसलमेर सिद्धपुर पट्टण जालौर भीनमालमें शास्त्रसंग्रह कराके पुस्तकभंडार किया । इनके पुत्र धर्मसीजीने शाह पद हांसिल किया। शत्रुजय गिरनार आबू बनारस आदि प्रसाद कराया सोनाके कलस चढाये चौरासी यात्रा की संघहस्ते पेटीभर मोहरेंकी बांटी मोतियोंकी माल सोनहरी कल्पसूत्र दिए तीन करोड मोहरें खर्चकर भंडार स्थापित किये और बहुतसे कमठाणे बणाये सम्बत १२५६ में देवी प्रसन्न होकर सिद्धपुर पट्टणमें आम्बके वृक्षतले खजाना बतलाया। धर्मसीजीसे नवमी पीढी सम्बत १५०५ में कुमारपालजी हुए उन्होंने सिद्धपुर पट्टण छोड सिंधदेसमें वास किया। सम्बत १५२५ में भट्टारक श्रीमनोहरसूरीजी लंकागच्छनायककी पदरावणी की। कुमारपालजीसे तीसरी पीढी बाढजी हुए । वे डीलमें राते मातेथे सो सम्बत १६१५ में सिन्धदेसकी भाषामें द्रढा कहलाये। उसवक्तसे ढड्डा नख प्रचलित हुवा । बाढाजीके पुत्र आसोजी। आसोजीके पुत्र बछुजी। बछुजीके पुत्र जगुजी। जगुजीके पुत्र
SR No.022455
Book TitleNyaya Tirth Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayvijay
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1913
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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