SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किया है। प्रथम २३ श्लोकों में नैगमादि सातों नयों का संक्षिप्त वर्णन किया है। २४ से ३२ तक ६ श्लोकों में प्रशस्ति दी गई है। " प्रस्तुत कृति की रचना में मुद्रित 'नयकरिणका' तथा उसका विवेचन काफी सहायक रहे हैं, इसलिये उनके प्रति आभार प्रदर्शित करता हूँ। हमारे लघुशिष्य मुनिश्री जिनोत्तमविजयादि के लिए नयज्ञान की प्राप्ति हेतु रचित प्रस्तुत लघुग्रन्थ अन्य सभी पाठकों के मन में भी नयज्ञान के प्रति जिज्ञासात्मक भावना पैदा करनेवाला हो, इसी शुभेच्छापूर्वक विराम पाता हूं। .. श्री वीर सं० २५०६, लेखकविक्रम सं० २०३६, विजयसुशीलसूरि नेमि सं० ३४, स्थल - गोहिली वैशाख शुद ६, बुधवार जैनउपाश्रय दिनांक १८-५-८३ [सिरोही समीपत्ति [गोहिली में बावन राजस्थान] जिनालय जिनमन्दिर में अंजनशलाका-प्रतिष्ठामहोत्सव का दिन] * * * - बारह -
SR No.022450
Book TitleNayvimarsh Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1983
Total Pages110
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy