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________________ जैनमत-विचार । marrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrammaaaaaa.. ताज़ा होने पर भी दिन में भोजन नहीं करता" यहां पर अर्थापत्ति प्रमाण से यह समझ लिया जाता है, कि जब देवदत्त दिन में भोजन नहीं करता और स्थूलपना उसमें है ही, तब वह रात्रि में अवश्य भोजन करता है। अर्थात् विना रात्रि के भोजन किये देवदत्त में जिस प्रकार स्थूलपने की आपत्ति आती है, उस प्रकार संसार में सर्वज्ञ का अभाव विना माने कोई आपत्ति नहीं आती, (मीमांसक) सर्वज्ञ के दिये हुए धर्मोपदेश की, जो संसार में असम्भवताहै, वह असम्भवता, सर्वज्ञ के मानने पर नहीं बन सकती, यही सर्वज्ञ के मानने में आपत्ति है, (जैन) आपने संसार में, सर्वज्ञ द्वारा दिये हुए धर्मोपदेश की असम्भवता, केसे जान ली। ___ (मीमांसक) अपौरुषेय वेदके द्वारा ही जब धर्मोपदेश सिद्ध हो जाता है, तब सर्वज्ञ द्वारा धर्मोपदेश का होना कैसे संभव हो सकता है। (जैन) आपने जो अपौरुषेय (जिसका कोई बनाने वाला न हो) वेद को धर्म का उपदेशक माना है उस में यह प्रश्न उठता है कि आपके कह हुए वेद का व्याख्यान करने वाला सर्वज्ञ है या असर्वज्ञ ? यदि सर्वज्ञ, है तो सर्वत्र के उपदेश की असम्भवता नहीं हो सकती। यदि असर्वज्ञ है, तो वेद का वह असर्वज्ञ पुरुष उल्टा अर्थ भी समझा सकता है, फिर बंद में प्रमाणता नहीं आ सकती । और
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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