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________________ जैनमत-विचार । ४६ उसको किस समय कौन सा ज्ञान होता है, फिर भूत व भविष्यत के पुरुषों के ज्ञान की बाबत तो कहना ही क्या है । तीसरं यह बात है कि यदि आपको तीनों काल के समस्त पुरुषों के प्रत्यक्ष ज्ञानों की जानकारी है, अर्थात् यदि आप प्रत्यक्ष ज्ञान से यह जानते हैं कि कोई भी पुरुष प्रत्यक्ष ज्ञान से समस्त पदार्थों को नहीं जानता, तो आपका यह ज्ञान इन्द्रिय प्रत्यक्ष तो हो नहीं सकता, और ज्ञान आपको समस्त पुरुषों के ज्ञान का है ही, इस लिये आपको अपना वह प्रत्यक्ष ज्ञान, अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष ही मानना पड़ेगा, और अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष मानने से आप स्वयं ही जब सर्वज्ञ ठहर जायँग, तब आपका, सर्वज्ञ का निषेध करना, कदापि युक्तिसंगत नहीं हो सकता, इसलिये आपको भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष व अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष दोनों ही मानने चाहिये । । ( मीमांसक ) जब कि समस्त पदार्थों में प्रमेयत्व हेतु ही नहीं रहता, तब प्रेमयत्व हेतु से समस्त पदार्थों में प्रत्यक्ष ज्ञान का विषयपना आप कैसे सिद्ध कर सकते हो । (जैन) न चासिद्ध प्रमेयत्वं काय॑तो भागतोऽपि वा। सर्वथाप्यप्रमेयस्य पदार्थस्याव्यवस्थितेः ॥९१॥ यदिषभिः प्रमाणैःस्यात्सर्वज्ञः केन वार्यते ।
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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