SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शंकरमत-विचार । इस लिये ईश्वर के न शरीर ही सिद्ध हो सकता है और न कोई जिनेन्द्र की तरह का धर्म विशेष ही, जिस से कि जिनेन्द्र की तरह बिना इच्छा के ही उसको जगत का कर्ता मान लिया जाये। (सदाशिव) यदि ईश्वर के नित्य ज्ञान को कर्त्ता मान लिया जाय तो क्या हानि है । (जैन) ज्ञानमीशस्य नित्यं चेदशरीरस्य न क्रमः । कार्याणामक्रमाद्देतोः, कार्यक्रमविरोधतः ॥ २६ ॥ ___ यदि शरीर रहित ईश्वर के नित्य ज्ञान को संसार के कार्यों का कारण माना जायगा तो क्रम २ से होने वाले कार्यों को भी एक साथ होना पड़ेगा, क्योंकि न्याय का ऐसा नियम है कि समर्थ कारण के होने पर कार्य अवश्य ही होता है। जब ईश्वर का ज्ञान समर्थ कारण हमेशा मौजूद रहता है तब कार्य क्रम २. से कदापि नहीं हो सकते । अथवा यदि कार्य क्रम २ से होंगे तो ईश्वर का नित्य ज्ञान समर्थ कारण सिद्ध नहीं हो सकता। इस के अतिरिक्त ईश्वर के नित्य ज्ञान को चाहे प्रमाण-स्वरूप (कारणरूपज्ञान.) माना जाय अथवा फल स्वरूप. (कार्यरूपज्ञान) माना जाय वह सिद्ध भी नहीं होता। क्योंकि .
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy