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________________ १० आस-परीक्षा । , वैशेषिक के मत में ईश्वर-कर्ता नहीं बनता तो न बनने दीजिये, हम तो "भक्त लोगों का अनुग्रह (फायदा) करने के लिये, और दुष्ट लोगों का निग्रह (नाश) करने के लिये" ईश्वर का शरीरधारी अवतार होना मानते हैं, बहुत से भक्त लोगों का अनुग्रह करने के लिये स्वयं भगवान ने सूकर, कछुवे आदि का अवतार लिया है, इसलिये शरीर धारी ईश्वर के मानने में तो कोई बाधा नहीं आती (जैन) आपका भी यह कहना ठीक नहीं है । देहान्तराद्विना तावत् वदेहं जनयद्यदि । तदाप्रकृतकार्येऽपि, देहाधानमनर्थकम् ॥ १९ ॥ देहान्तरात्स्वदेहस्य, विधाने चानवस्थितिः। . तथा च प्रकृतं कार्य,कुर्यादीशो न जातुचित् ॥२०॥ ___ क्योंकि यदि ईश्वर भक्तों के अनुग्रह के लिये कछुवे आदि के शरीर को बिना दूसरे शरीर के स्वयं ही बना लेता है, तो जैसे उसने एक कछुवे के शरीर रूपी कार्य को विना दुसरे शरीर के स्वयं ही बना लिया, उस ही प्रकार अन्य कार्यों के लिये भी शरीर धारण करना फिजूल है, क्योंकि उन को भी वह विना शरीर धारण किये ही कर सकता है। और यदि उस शरीर को दूसरे शरीर से बनाता है तो दूसरे शरीर के लिये तीसरा
SR No.022445
Book TitleAaptpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmravsinh Jain
PublisherUmravsinh Jain
Publication Year
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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