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________________ पंक्ति . प्रमाणपने की उत्पत्ति खयमेव होती है इस मीमांसकमतका __मण्डन खण्डन. ... ... ... ... .... प्रमाणताकी ज्ञप्ति कैसे ? ... ... . प्रमाणताज्ञप्तिको पराधीन माननेवाले यौगमतका पूर्वो त्तरपक्ष. ... ... ... ... ... ... बौद्ध के प्रमाणलक्षणमें दोष. ... ... भट्टमतानुसार प्रमाणलक्षणमें दोष. ... प्रभाकरके प्रमाणलक्षणमें दोष. ... ... नैयायिकके प्रमाणलक्षणमें दोष. ... अंतमें पूर्ण निष्पन्न प्रमाणलक्षणका स्वरूप. ... द्वितीय प्रकाश। प्रत्यक्षप्रमाणका लक्षण. ... ... ... ... ... 'विशद' शब्दका अर्थ. ... ... ... ... ... बौद्धके निर्विकल्पक ज्ञानको प्रत्यक्षप्रमाण माननेमें दोष. अर्थ, आलोक ज्ञानके कारण नहीं हैं. ... ... ... अर्थसे अजन्य ज्ञानको अर्थप्रकाशक होसकनेका निरूपण. अर्थग्रहणमें योग्यता क्या है? ... ... ज्ञानमें अर्थाकार होनेका खण्डन.... ... ... ... योगके प्रत्यक्षलक्षणका खण्डन. ... ... ... ... चक्षुके अप्राप्यकारी होनेमें पूर्वोत्तर पक्ष. ... ... प्रत्यक्षके दो भेद और प्रथमभेदके अवग्रहादि चार भेद. अवग्रह-ज्ञानका लक्षण. ... ... ... ... ... ईहा-ज्ञानका लक्षण. ... ... ... ... अवाय, धारण ज्ञानोंका लक्षण ... ... ... ईहादि ज्ञानोंमें अपूर्व विषयकी सिद्धि. ... ... ... प्रथमभेदके 'सांव्यवहारिक' नामकी सार्थकता. ... दूसरे भेद पारमार्थिकका लक्षण तथा अवधि आदि तीन भेदोंका वर्णन. ... ... ... ... ... ३६ । ::::: ३७
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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