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________________ ११८ आगम कहते हैं। ऐसा लक्षण करने पर भी इच्छानुसार बोले हुए पूर्वावर असम्बद्ध वाक्यके द्वारा तथा ठगईके वाक्योंसे होने वाले ज्ञानमें एवं सोते हुए तथा पागल मनुष्यके वचनोंसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानमें अथवा "नदीके तीरपर फल हैं वालको दौड़ो" इत्यादि वाक्यसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानमें अतिव्याप्ति आती है; क्योंकि यह ज्ञान वाक्यके द्वारा हुआ है और अर्थको विषय भी करता है किन्तु आगमरूप नहीं है। इसलिये उक्त लक्षणमें 'आप्त' इतना अधिक शब्द कहा है। 'आप्तके वाक्यद्वारा होनेवाले ज्ञानमात्रको आगम कहते हैं । ऐसा लक्षण करने पर भी आतके वाक्योंका जो केवल श्रावण प्रत्यक्ष होता है कि यह अमुक शब्द है, उसमें अतिव्याप्ति आती है; क्योंकि उसमें उक्त आगमका लक्षण तो घटित होगया किन्तु वह यथार्थमें आगम नहीं है। इसलिये लक्षणमें 'अर्थ' इतना और कहा है । यहांपर अर्थ शब्द बोलनेसे इसका अर्थ तात्पर्य समझना चाहिये । क्योंकि आचायौंने ऐसा कहा है कि “वचनमें तात्पर्य ही ग्राह्य होता है"। इसलिये "आप्तवाक्यरूप कारणसे होनेवाले तात्पर्य ज्ञानको आगम कहते हैं" यह आगमका लक्षण निर्दोष है। यथा"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:"इत्यादिवाक्यार्थज्ञानम् । सम्यग्दर्शनादीन्यनेकानि मोक्षस्य सकलकर्मक्षयस मार्ग उपायो, न तु मार्गाः। ततो भिन्नलक्षणानां दर्शनादीनां त्रयाणां समुदितानामेव मार्गत्वं, न तु प्रत्येकमित्ययमर्थः । मार्ग इत्येकवचनप्रयोगस्तात्पर्यसिद्धः, अयमेव वाक्यार्थः। अत्रैवार्थे प्रमाणसाव्यसंशयादिनिवृत्तिः प्रमितिः। जैसे "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः” इस वाक्यका तात्पर्यज्ञान यह है कि सम्यग्दर्शनादिक अनेक होनेपर भी मो. क्षका अर्थात् सम्पूर्ण कर्मोंके क्षयका मार्ग अर्थात् उपाय एक ही है, अनेक नहीं । भावार्थ इससे यह सिद्ध हुआ कि भिन्न भिन्न
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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