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________________ हेतुके रहनेकी अपेक्षासे पक्ष और दृष्टान्तमें सदृशताके दिखानेको उपनय कहते हैं । जैसे, यह भी उसीतरह धूमवान् है। हेतुको दिखाते हुए साध्यका सद्भाव दिखानेको अर्थात् प्रतिज्ञाके कहनेको निगमन कहते हैं। जैसे "इसलिये यह अग्निमान् ही है।” इन दोनोंके (उपनय, निगमन,) विपरीत कथनको आभास अर्थात् उपनयाभास और निगमनाभास कहते हैं । इस प्रकार अनुमानका निरूपण किया। अथागमो लक्ष्यते । आप्तवाक्यनिबन्धनमर्थज्ञानमागमः। अत्रागम इति लक्ष्यम् । अवशिष्टं लक्षणम् । अर्थज्ञानमित्येतावदुच्यमाने प्रत्यक्षादावतिव्याप्तिः, अत उक्तं वाक्यनिबन्धनमिति । वाक्यनिबन्धनमर्थज्ञानमागम इत्युच्यमानेऽपि याहच्छिकसंवादिषु विप्रलम्भवाक्यजन्येषु सुप्तोन्मत्तादिवाक्यजन्येषु वा नदीतीरफलसंसर्गादिज्ञानेष्वतिव्याप्तिः । अत उक्तमातेति । आप्तवाक्यनिबन्धनज्ञानमित्युच्यमानेऽपि, आप्तवाक्यकर्मके श्रावणप्रत्यक्षेऽतिव्याप्तिः, अत उक्तमर्थेति । अर्थस्तात्पर्यरूप इति यावत । तात्पर्यमेव वचसीत्यभियुक्तवचनात् । तत आप्तवाक्यनिबन्धनमर्थज्ञानमित्युक्तमागमलक्षणं निर्दोषमेव । आगे आगमका लक्षण कहते हैं । आप्तके वाक्यसे उत्पन्न होनेवाले अर्थज्ञानको आगम कहते हैं । यहांपर आगम लक्ष्य है, और 'आप्तके वाक्यसे होनेवाला अर्थज्ञान' इतना लक्षण है । यदि केवल "अर्थज्ञानत्व" को ही आगमका लक्षण माना जाय तो प्रत्यक्षादिकमें अतिव्याप्ति आती है, क्योंकि वह अर्थका ज्ञान तो है परन्तु आगम नहीं है। क्योंकि आगमको परोक्षके भेदोंमें गिना है । इसलिये 'वाक्यरूप निमित्तसे' इतना विशेष कहा । 'वाक्यनिमित्तसे होनेवाले अर्थज्ञानको
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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