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________________ Toges नमः सिद्धेभ्यः। श्रीधर्मभूषणयतिविरचिता न्यायदीपिका। भाषाटीकासमेता। ग्रन्थके आदिमें मङ्गलाचरण करनेके चार प्रयोजन हैं,-(१) विनविघात (२) शिष्टाचारपरिपालन (३) नास्तिकतापरिहार और (४) गुणस्मरण । इसका खुलासा इस प्रकार है कि १ उत्तम कार्योंमें अनेक विघ्न आया करते हैं। मङ्गलाचरण करनेसे उत्पन्न हुए शुभ भावोंके निमित्तसे उस अन्तराय कर्मका अनुभाग क्षीण हो जाता है जो कि अभीष्ट कार्यमें विघ्न करता था, इसलिये वह अन्तरायकर्म इष्टकार्यमें बाधक नहीं हो सकता। २ सदासे शिष्ट पुरुष ग्रन्थके प्रारंभमें मङ्गलाचरण करते हैं इसलिये ग्रन्थके प्रारंभमें मङ्गलाचरण करना युक्तिसङ्गत है। ३ मङ्गलाचरण करनेसे पुण्य, पाप, इहलोक, परलोक, वर्ग, नरक,मोक्ष इत्यादि पदार्थों में ग्रन्थकर्ताकी श्रद्धा जान पड़ती है। ४ इष्ट सुखकी प्राप्ति सम्यग्ज्ञानसे होती है, सम्यग्ज्ञानकी प्राप्ति शास्त्रसे और शास्त्रकी उत्पत्ति आप्तसे होती है । इसलिये इष्टफलकी सिद्धिके परम्परा साधनखरूप आप्त भगवानका स्तवन उपकारके स्मरणार्थ ग्रंथारंभमें अवश्य कर्तव्य है।
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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