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________________ हिंदी बंगानुवादसहितं परीक्षामुखं । ७३ ताहा असंगत, केना ये निजे प्रमाण नहे ताहा द्वारा वस्तुव्यवस्था कखन ओ हइते पारेना । तर्क प्रमाण ना हइते तद्द्द्वारा व्याप्ति सिद्धि कखन ओ संभव नहे । आर तर्क आदिर प्रमाणत्वे इहा ओ अपर युक्ति ये याहार प्रतिभास भिन्नरूपे हय ताहा अतिरिक्त प्रमाण रूपे गण्य, प्रत्यक्ष आदि हइते तर्कप्रभृतिर प्रतिभास विलक्षण, सुतरां उहा अतिरिक्त प्रमाण रूपे गण्य हहते पारे ।। ५५-६० ॥ विषयाभासः सामान्यं विशेषो द्वयं वा स्वतंत्रं । तथाऽप्रतिभासनात् कार्याकरणाच्च । समर्थस्य करणे सर्वदोत्पत्तिरनपेक्षत्वात् । परापेक्षणे परिणामित्वमन्यथा तदभावात् । स्वयमसमर्थस्याकारकत्वात्पूर्ववत् ।।६१।६२।६३।६४।६५॥ हिंदी —- प्रमाणका विषय केवल सामान्यही है अथवा विशेष है वा सामान्य और विशेष दोनों प्रमाणके स्वतंत्र विषय हैं यह कहना विषयाभास है । क्योंकि पदार्थमें केवल सामान्य आदि मालूम नहिं पड़ते और केवल सामान्य आदि से कोई अर्थक्रिया भी नहीं बन सकती । कहोगे - केवल सामान्य आदिके माननेसे भी अर्थक्रिया हो जाती है तो वहांपर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं - समर्थ होकर केवल सामान्य आदि क्रिया करते हैं कि असमर्थ ? यदि समर्थ होकर कार्य करते हैं तो हमेशह कार्यकी उत्पत्ति होनी चाहिये क्योंकि केवल सामान्य आदि कार्यकरनेमें किसी दूसरेकी अपेक्षा नहिं
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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