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________________ ७० सनातनजैनग्रंथमालायां । उत्पन्न हो उसे आगमाभास कहते हैं जैसा बालको दौड़ो नदीके किनारे बहुतसे लाडू रक्खे हैं। तथ अंगुलीअग्रभागमें सैकड़ो हाथियोंका समूह रहता है। क्योंकि रागी द्वेषी आदिके बचनों में विसंवाद अर्थात् पदाथका वास्तविक ज्ञान नहिं होता। ____बंगला--ये आगम रागी द्वेषी अथवा मोही व्यक्तिद्वारा जनित ताहा आगमाभास । येमन वालको नदी तीरे मोदकराशि आछे शीघ्र दौड़ाइया याओ, वा अंगुलिर अग्रभागे हस्तिशत शत रहियाछे एसकते आगमास, केनना रागीद्वेषरि कथाद्वारापदार्थर वास्वविक ज्ञान हयना ॥५२॥५४॥ प्रत्यक्षमेवैकं घमाणमित्यादिसंख्याभासं । लौकायतिकस्य प्रत्यक्षतः परलोकादिनिषेधस्य परवुध्यादेश्चासिद्धरतद्विषयत्वात् । सौगतसांख्ययोगाभाकरजैमिनीयानांपत्यक्षानुमानागमोपमार्थापत्यभावैरेकैकाधिकाप्तिवत् । अनुमानादेस्तद्विषयत्वे प्रमाणांतरत्वं । तर्कस्येव व्याप्तिगोचरत्वे पूमाणांतरत्वं । अपमा णस्याव्यवस्थापकत्वात्। पूतिभासभेदस्य च भेदकत्वात् ॥५५॥ ५६॥५७॥५८॥५९॥६०॥ हिंदी-केवल एक प्रत्यक्ष ही प्रमाण है । इत्यादि कहना संख्याभास है । क्योंकि प्रत्यक्षज्ञान परलोक और परज्ञान आदिका विषय नहिं करता और जो ज्ञान जिसको नहिं जानता वह उसका निषेध और विधान भी नहिं करसकता इसलिये नास्तिकमतमें न परलोकका निषेध हो सकता है और न पर
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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