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________________ ६८ सनातनजैनग्रंथमालायां । हय किन्तु ऐ स्थल प्रथमे साधनाभाव परे साध्याभाव बला हइयाछे ॥३४॥४५॥ ___ बालप्योगाभासः पंचावयवेषु कियद्धीनता। अग्निमानयं देशो धूमवत्त्वात् यदित्थं तदित्थं यथा महानसः । धूमवांश्चायमिति वा । तस्मादग्निमान् धूमवांश्चायं । स्पष्टतया प्रकृता पूतिपचेरयोगात् ॥४६॥४७॥४८॥४९॥५०॥ हिंदी-उपयुक्त प्रतिज्ञा हेतु आदि पांच अवयवोंमें यदि एक भी अवयव कम होगा तो वह वालप्रयोगाभास कहा जायगा । जिस प्रकार इस देशमें अग्नि है क्योंकि यहां धूम दीखता है जहां धूम होता है वहां नियमसे आग्न होती है जैसा रसोईघर, यहां पर प्रतिज्ञा हेतु और उदाहरण इन तीन ही अवयवोंका उल्लेख किया गया है इसलिये यह वाल प्रयोगाभास है । अथवा इन्ही तीन अवयवोंके साथ 'वैसा यह भी धूमवाला है' यह चतुर्थ अवयव (उपनय) जोड़ कर चार अवयवोंका उल्लेख भी वालप्रयोगाभास है । तथा होना तो चाहिये दृष्टांतके पीछे उपनय और उसके पीछे निगमनका प्रयोग, किंतु वैसा न कर उल्टाप्रयोग-अर्थात् पहिले निगमनका और पीछे उपनयका प्रयोग करना भी वालप्रयोगाभास है जैसा-इसीलिये यह अग्निवाला है। और यह भी धूमवाला है (यहां पर पहिले निगमनका प्रयोग और पीछे उपनयका प्रयोग
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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