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________________ हिंदीबंगानुवादसहितंपरीक्षामुखं । ६५ शब्दोऽमूर्त्तत्वादिद्रियसुखपरमाणुघटवत् विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्त । विद्युदादिनातिप्रसंगात् ॥४०॥४१॥४२॥४३॥ हिंदी-अन्वयदृष्टांताभास तीन प्रकारका है साध्य विकल साधनविकल और साध्यसाधनउभयविकल । यथा-शब्द अपौरुषेय है-किसीपुरुष द्वारा नहिं कियागया है क्योंकि वह अमूर्त है जैसा इंद्रियसुख परमाणु और घट ॥ अर्थात् यहां पर इंद्रिय सुख साध्यविकल दृष्टांत क्योंकि इंद्रिय सुख अपौरुषेय नहि है पुरुषकृतही है । परमाणु साधन विकल दृष्टांत है क्योंकि परमाणुमें रूप रस गंध आदि रहते हैं इस लिये वह मूर्त है अमूर्त नहि और घट उभय विकल है क्योंकि घट पुरुष कृत और मूर्त है इसलिये उसमें अपौरुषेयत्व साध्य एवं अमूतत्व हेतु दोनोंही नहि रहते । यहां साध्य विकल आदिके क्रमसे उदाहरण समझलेना चाहिये तथा इसी उपर्युक्त अनुमानमें जो २ अमूर्त होता है वह २ अपौरुषेय होता है एसी व्याप्ति है परन्तु जो २ अपौरुषेय होता है वह २ अमूर्त होता है ऐसी उल्टी व्याप्ति दिखाना भी अन्वयदृष्टांताभास कहाजाता है क्योंकि विजलीसे व्यभिचार होजाता है अर्थात् विजलीमें अपौरुषेयत्व तो रहता है अमूर्तत्व नहिं रहता ।। ४०१४११४२।४३॥ बंगला-अन्वयदृष्टान्ताभास तिन प्रकार-साध्य विकल साधन विकल ओ साध्यसाधनोभय विकल । यथा ' शब्द
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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