________________
६२ सनातनजैनग्रंथमालायां । वृत्ति अनैकांतिक कहते हैं जिसप्रकार शब्द अनित्य है क्योंकि प्रमेय है जैसे घड़ा । यहां पर प्रमेयत्व हेतु निश्चित विपक्ष वृत्ति अनैकांतिक है क्योंकि नित्यपदार्थ आकाशादि विपक्षम निश्चयरूपसे रहता है ॥३१॥२३॥ ..
बंगला-ये हेतु विपक्षे निश्चितभाव थाके ताहाके निश्चय वृत्ति अनेकांतिक वले । येमन शब्द अनित्य केनना उहा प्रमेय येमन घट । एस्थल प्रमयत्वहेतु निश्चितविपक्षवृत्ति अनैकांतिक ये हेतु नित्यपदार्थ आकाशादिरूप विपक्षे ओप्रमेयत्व निश्चित रूप आछे ॥३१॥३२॥
शंकितविपक्षवृत्तिका उदाहरण
शंकितवृत्तिस्तु नास्ति सर्वज्ञो वक्तृत्वात् । सर्वज्ञत्वेन वक्तृत्वाविरोधात् ॥ ३३ ॥ ३४ ॥
हिंदी--जो हेतु विपक्षमें संशयरूपसे रहे उसै शकितवृत्ति अनकांतिक कहते हैं जिस प्रकार सर्वज्ञ नहिं है क्योंकि वोलने वाला है यहां पर वक्तृत्व हेतु शंकितविपक्षवृत्ति अनेकांतिक हैं क्योंकि एक जगह सर्वज्ञत्व और वक्तृत्व रहसकते हैं सर्व । ज्ञत्व वक्तृत्वका विरोध नहिं ॥ ३३ ॥ ३४॥
बंगला-ये हेतु विपक्षे संदिग्ध भावे आछे ताहाके शंकितवृति अनैकांतिक वले । येमन सर्वज्ञ नाइ ये हेतु वक्तृत्व आछे । एखाने वक्तृत्व हेतु शंकित विपक्षवृत्ति अनेकांतिक ।