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________________ हिंदीबंगानुवादसहितंपरीक्षामुखं । ५९ न हो उसे असिद्ध कहते हैं अर्थात् पक्षमें जिसकी सत्ताका अभाव हो उसे स्वरूपीसद्ध कहते हैं । और पक्ष में जिसकी सत्ताका निश्चय न हो उसै संदिग्धासिद्ध कहते हैं ॥ २२॥ - बंगला-याहार सत्ता पक्षे अविद्यमान अथवा संदिग्ध मोटेर उपर याहार सत्ता पक्षे निश्चित नहे, ताहाके आसिद्ध वले। तन्मध्ये याहार सत्ता पक्षे अविद्यमान ताहाके स्वरुपासिद्ध एवं पक्षे याहार सत्तार संदेह आछे ताहाके संदिग्धासिद्ध कहे २२ संदिग्धासिद्धहेत्वाभास अविद्यमानसत्ताकः परिणामी शब्दश्चाक्षुषत्वात् ॥ २३ ॥ स्वरूपेणासत्त्वात् ॥ २४॥ हिंदी-शब्द परिणामी है क्योंकि वह आंख से देखा जाता है । यह अविद्यमानसत्ताक अर्थात् स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है । क्योंकि शब्द कानसे सुना जाता है आंख से नहिं देखा जाता इसलिये शब्द ( पक्ष ) में चाक्षुषत्व हेतुका स्वरूप ही नहिं रहता ॥ २३ ॥ २४ ॥ बंगला-शब्द परिणामी येहेतु उहाचलुग्राह्य आविद्यमान सत्ताक, अर्थात् स्वरूपासिद्ध हेत्वाभासेर दृष्टांत । केनना शब्द श्रवणेंद्रियग्राह्य चाक्षुष नहे । एइजन्य पक्षे शब्दे चाक्षुष हेतुर स्वरूपतइ अभाव आछे ॥ २३ ॥ २४ ॥ अविद्यमाननिधयो मुग्धबुद्धि प्रति-अग्निरत्र धूमात्र ॥ २५ ॥ तस्य वाष्पादिभावेन भूतसंघाते संदेहात् ॥ २६ ॥
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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