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________________ हिंदीबंगानुवादसहितंपरीक्षामुखं । ५७ बंगला---'शब्द अपरिणामी ये हेतु उहा कृतक येमन घट' इहा अनुमानबाधितेर उदाहरण-अर्थात् ( शब्दः परिणामी कृतकत्वात् घटवत् ) शब्द परिणामी येहेतु उहा कृतक येमन घट एइ अनुमान पूर्वोक्त अनुमोनर वाधक आछे ॥ १७॥ प्रेत्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवत् ॥ १८॥ हिंदी-धर्म परभवमें दुःख देने वाला है क्योंकि वह पुरुषके आधीन है जैसा अधर्म यह आगम बाधितका उदाहरण है क्योंकि आगममें धर्म परभवमें सुखका देने वाला और अधर्म दुख देने वाला कहा गया है ॥ १८ ॥ बंगला-'धर्म परलोके दुःखदायी केनना उहा पुरुषाधीन, येमन अधर्म, इहा आगम वाधितेर उदाहरण, केनना 'धर्म परलोके सुखप्रद ' इहा आगम हइते जाना याइतेछे । अधर्म वस्तुतः परजन्मे दुखःदायी इहा आगम वले ॥१८॥ शुचि नरशिर:कपालं पाण्यंगत्वाच्छंखशुक्तिवत् ॥१९ ।। हिंदी-मनुष्यके मस्तककी खोपड़ी पवित्र है क्योंकि वह प्राणीका अंग है जिसप्रकार शंख सीप प्राणीके अंग होनेसे पवित्र गिने जाते हैं । यह लोकबाधितका उदाहरण है क्योंकि लोकमें शंख सीपकी तरह खोपड़ीको कोई पवित्र नहिं कहता ॥ १९॥ बंगला-नरशिरोऽस्थि पवित्र येहेतु उहा प्राणीर अंग
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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