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________________ ( २७ ) हेतु साध्य कालमें नहीं रहते इसलिये उनका तादात्म्यसंबंध न होनेसे तो वे स्वभाव हेतु नहीं कहे जाते और तदुत्पत्तिसंबंध न रहने से कार्यहेतु नहिं होसकते किंतु स्वभाव आर कार्यलिंगसे पूर्वचर उत्तरचरलिंग जुदे ही हैं ।। ६१ ॥ बंगला -- ये स्थाने तादात्म्य संबंध हय ताहाके स्वभाव हेतु बलाय । एवं ये खाने तदुत्पत्ति संबंध हय, ताह के कार्य - लिंग बाहय । एवं एकइ कालेस्थित साध्यसाधनेर संबंध-तादात्म्य संबंध अथवा तदुत्पत्तिसंबंध हइया - थाके । पूर्वचर ओ उत्तरचर हेतु साध्यकाले थाके ना एइजन्य ताहादेर तादात्म्यसंबंध ना हओयाते सेइ पूर्वचर उत्तरचर हेतुके स्वभावहेतु बला जायना एवं तदुपत्तिसंबंध ना थाकाते कार्यहेतु हइते पारे ना किंतु स्वभाव ओ कार्यलिंग हइते पूर्वचर उत्तरचरलिंग पृथक्इ हइया थाके ॥ ६१ ॥ भाव्यतीतयोर्मरणजाग्रद्बोधयोरपि नारिष्टोद्बोधौ प्रति हेतुत्वं ॥ ६२ ॥ तदूव्यापाराश्रितं हि तद्भावभावित्वं ॥ ६३ ॥ हिंदी - आगामी मरण और वीत हुआ जाग्रद्बोध (जागती अवस्थाका ज्ञान ) अपशकुन और उद्घोष ( प्रातःकाल सोकर उठना ) के प्रति कारण नहिं हो सकते इसलिये आगामी मरण और अपशकुन तथा अतीत जाग्रद्बोध और उद्बोधका दृष्टांत लेकर बौद्ध जो कालके व्यवधानसे भी कार्यकारणभाव मानता है सो निर्मूल हुआ क्योंकि कारण के सद्भावमें कार्यका
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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