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________________ सनातनजैनग्रंथमालायां___व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्तिस्तत्रापि । तद्विपतिपत्तावनवस्थानं स्यादृष्टांतांतरापेक्षणात् ॥४०॥ हिंदी--दृष्टांत किसी विशेष व्यक्तिरूप होता है और व्याप्ति सामान्यरूपसे होती है । उस दृष्टांतमें भी यदि सामान्यरूप व्याप्तिमें [ साध्य साधनके विषय में ] विवाद खडा होजाय भलेप्रकार निश्चय न हो तो दूसरे दृष्टांतकी आवश्यकता होगी यदि उसमें भी विवाद होगा तौ तीसरे दृष्टांतकी जरूरत होगी इसप्रकार अनवस्था दोष आवेगा ॥ ४० ॥ बंगला-दृष्टांत कोनओ विशेष व्यक्तिरूप हइया थाके । एवं व्याप्ति सामान्यरूप हइया थाके । से दृष्टांतेओ यदि सामान्यरूप व्याप्तिते (साध्य साधनेर विषये) विवाद उपस्थित हय सम्य प्रकारे निश्चय ना हय ताहा इहले एकटि अपर दृष्टांतेर आवश्यकता हइबे । यदि ताहातेओ विवाद उपस्थित हय ताहा हइले तृतीय दृष्टांतेर आवश्यकता हइवे । एरूप हइले अनवस्था दो. र प्राप्ति ॥ ४०॥ नापि व्याप्तिस्मरणार्थ तथाविधहेतुप्रयोगादेव तत्स्मृ तेः ॥ ४१ ॥ तत्परमभिधीयमानं साध्यधामणि साध्यसाधने संदेहयति ॥ ४२ ॥ कुतोन्यथोपन यनिगमने ॥४३॥ हिंदी-तथा व्याप्तिके स्मरणार्थ भी दृष्टांतका प्रयोगकरना कार्यकारी नहीं क्योंकि साध्यके साथ अविनाभावीपनेसे निश्चित हेतुके प्रयोगसे ही व्याप्तिका स्मरण हो जाता है। बल्कि वह कहा हुआ दृष्टांत साध्यविशिष्ट पर्वत आदि धर्मीमें साध्य और हेतुको ‘पर्वतादिधर्मियोंमें साध्य और हेतु मोजूद
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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